Baalkand Ramcharitmanas

 

 

Previous   Menu   Next

वंदना गुरु महाराज की

गुरु वंदना

 

बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।
महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर॥5॥

 

मैं उन गुरु महाराज के चरणकमल की वंदना करता हूँ, जो कृपा के समुद्र और नर रूप में श्री हरि ही हैं और जिनके वचन महामोह रूपी घने अन्धकार का नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं॥5॥

 

चौपाई :

बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा।

सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥

अमिअ मूरिमय चूरन चारू।

समन सकल भव रुज परिवारू॥1॥ 

 

मैं गुरु महाराज के चरण कमलों की रज की वन्दना करता हूँ, जो सुरुचि (सुंदर स्वाद), सुगंध तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है। वह अमर मूल (संजीवनी जड़ी) का सुंदर चूर्ण है, जो सम्पूर्ण भव रोगों के परिवार को नाश करने वाला है॥1॥

 

सुकृति संभु तन बिमल बिभूती।

मंजुल मंगल मोद प्रसूती॥

जन मन मंजु मुकुर मल हरनी।

किएँ तिलक गुन गन बस करनी॥2॥ 

 

वह रज सुकृति (पुण्यवान् पुरुष) रूपी शिवजी के शरीर पर सुशोभित निर्मल विभूति है और सुंदर कल्याण और आनन्द की जननी है, भक्त के मन रूपी सुंदर दर्पण के मैल को दूर करने वाली और तिलक करने से गुणों के समूह को वश में करने वाली है॥2॥

 

श्री गुर पद नख मनि गन जोती।

सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती॥

दलन मोह तम सो सप्रकासू।

बड़े भाग उर आवइ जासू॥3॥

 

श्री गुरु महाराज के चरण-नखों की ज्योति मणियों के प्रकाश के समान है, जिसके स्मरण करते ही हृदय में दिव्य दृष्टि उत्पन्न हो जाती है। वह प्रकाश अज्ञान रूपी अन्धकार का नाश करने वाला है, वह जिसके हृदय में आ जाता है, उसके बड़े भाग्य हैं॥3॥

 

उघरहिं बिमल बिलोचन ही के।

मिटहिं दोष दुख भव रजनी के॥

सूझहिं राम चरित मनि मानिक।

गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक॥4॥

 

उसके हृदय में आते ही हृदय के निर्मल नेत्र खुल जाते हैं और संसार रूपी रात्रि के दोष-दुःख मिट जाते हैं एवं श्री रामचरित्र रूपी मणि और माणिक्य, गुप्त और प्रकट जहाँ जो जिस खान में है, सब दिखाई पड़ने लगते हैं-॥4॥

 

 दोहा :

जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान।
कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान॥1॥

 

जैसे सिद्धांजन को नेत्रों में लगाकर साधक, सिद्ध और सुजान पर्वतों, वनों और पृथ्वी के अंदर कौतुक से ही बहुत सी खानें देखते हैं॥1॥

 

 चौपाई :

 गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन।

नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन॥

तेहिं करि बिमल बिबेक बिलोचन।

बरनउँ राम चरित भव मोचन॥1॥

 

श्री गुरु महाराज के चरणों की रज कोमल और सुंदर नयनामृत अंजन है, जो नेत्रों के दोषों का नाश करने वाला है। उस अंजन से विवेक रूपी नेत्रों को निर्मल करके मैं संसाररूपी बंधन से छुड़ाने वाले श्री रामचरित्र का वर्णन करता हूँ॥1॥

 

Next Page

 

 

By spiritual talks

Welcome to the spiritual platform to find your true self, to recognize your soul purpose, to discover your life path, to acquire your inner wisdom, to obtain your mental tranquility.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!