कठोपनिषद् प्रथम अध्याय तृतीय वल्ली सार
तृतीय वल्ली सार
‘हे नचिकेता! जो विवेकशील है, जिसने मन सहित अपनी समस्त इन्द्रियों को वश में कर लिया है, जो सदैव पवित्र भावों को धारण करने वाला है, वही उस आत्म-तत्त्व को जान पाता है; क्योंकि—
‘एष सर्वेषु भूतेषु गूढात्मा न प्रकाशते। दृश्यते त्वग्रय्या बुद्धिया सूक्ष्मया सूक्ष्मदर्शिभि:॥’
अर्थात् समस्त प्राणियों में छिपा हुआ यह आत्मतत्त्व प्रकाशित नहीं होता, वरन् यह सूक्ष्म दृष्टि रखने वाले तत्त्वदर्शियों को ही सूक्ष्म बुद्धि से दिखाई देता है।