अक्रूर कृत श्रीकृष्ण स्तुति अर्थ सहित

अक्रूर कृत श्रीकृष्ण स्तुति अर्थ सहित | अक्रूर कृत श्रीकृष्ण स्तुति: | अक्रूर जी को भगवान् श्रीकृष्ण के परब्रह्मस्वरूप का साक्षात्कार तथा उनकी स्तुति | अक्रूर जी द्वारा रचित श्रीकृष्ण स्तुति | Akroora krita Shri Krishna Stuti | श्री गर्ग संहिता के मथुरा खंड में अक्रूर जी द्वारा की गयी श्री कृष्ण की स्तुति | अक्रूर स्तुति करने के लाभ 

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अक्रूर कृत श्रीकृष्ण स्तुति अर्थ सहित

 

अक्रूर कृत श्रीकृष्ण स्तुति

 

श्री गर्ग संहिता के मथुरा खंड में अक्रूर जी द्वारा की गयी श्री कृष्ण की स्तुति का वर्णन है । श्रीनारद जी कहते हैं – राजन ! अक्रूर और बलरामजी के साथ मथुरा के उपवन के पास पहुंचकर , यमुना के निकट रथ रोक कर भगवान श्रीकृष्ण उतर गए और यमुना का जल पीकर पुनः रथ पर आ गए । तब उन दोनों भाइयों की आज्ञा ले कर अक्रूर जी यमुना जी में नहाने के लिए गए और नित्य कर्म करने के लिए यमुना के निर्मल जल में उतरे । यमुना जी का जल अगाध था । उसमें बड़ी – बड़ी भँवरें उठ रही थीं । अक्रूर जी ने देखा , उसी जल में बलराम और श्रीकृष्ण दोनों भाई खड़े – खड़े परस्पर बातें कर रहे हैं । नरेश्वर , यह देख अक्रूर जी चकित हो उठे और रथ पर जाकर देखा तो वहां भी वे दोनों बैठे दिखाई दिए , फिर जल में आकर देखा तो वहां भी उनके दर्शन हुए । बलराम जी नागराज शेष के रूप में कुंडली मारकर बैठे थे और उनकी गोद में लोकवन्दित परम प्रकाशमय गोलोक , गोवर्धन पर्वत , यमुना नदी , मनोहर वृन्दावन तथा असंख्य कोटि सूर्यों की ज्योतियों का प्रभावशाली मंडल क्रमशः दिखाई दिए । उसी ज्योतिर्मंडल में रास मंडल के भीतर कोटि – कोटि कामदेवों के सौंदर्य – माधुर्य को तिरस्कृत करने वाले साक्षात परिपूर्णतम पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण श्रीराधारानी के साथ वहां अक्रूर के समक्ष दिखाई पड़े । तब श्रीकृष्ण को परब्रह्म परमात्मा समझकर अक्रूर ने बारम्बार उन्हें नमस्कार किया और दोनों हाथ जोड़कर अत्यंत हर्ष के साथ उनकी स्तुति आरम्भ की ।

 

अक्रूर कृत श्रीकृष्ण स्तुति:

 

अक्रूर उवाच

नम: श्रीकृष्णचन्द्राय परिपूर्णतमाय च ।

असंख्याण्डाधिपतये गोलोकपतये नम: ॥१॥

 

अक्रूर जी बोले – असंख्य ब्रह्माण्डों के अधीश्वर तथा गोलोक धाम के स्वामी परिपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण को नमस्कार है।।1।।

 

श्रीराधापतये तुभ्यं  व्रजाधीशाय ते नम:

 नम: श्रीनन्दपुत्राय यशोदानन्दनाय च ॥२॥

 

प्रभो ! आप श्री राधा के प्राणवल्लभ तथा व्रज के अधीश्वर हैं , आपको बार – बार नमस्कार है । श्री नंदनंदन तथा माता यशोदा को आमोद – प्रमोद देने वाले श्रीहरि को नमस्कार है ।।2।।

 

देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते ।

यदूत्तम जगन्नाथ पाहि मां पुरुषोत्तम ॥३॥

 

देवकीपुत्र , गोविन्द , वासुदेव , जगदीश्वर , यदुकुल तिलक , जगन्नाथ , पुरुषोत्तम आपको नमस्कार है ।।3।।

 

वाणी सदा ते  गुणवर्णने स्यात्

कर्णौ कथायां  ममदोश्च कर्मणि ।

मन: सदा त्वच्चरणारविन्दयो

र्दृशौ स्फुरद्धामविशेषदर्शने ॥४॥

 

मेरी वाणी सदा आपके गुणों के वर्णन में लगी रहे , मेरे कान आपकी कथा सुनते रहे । मेरी भुजाएं आपकी प्रसन्नता के लिए कर्म करने में तल्लीन रहें । मन सदा आपके चरणारविन्दों का चिंतन करे तथा दोनों नेत्र आपके प्रकाशमान एवं भव्य धाम विशेष के दर्शन में संलग्न हों ।

 

(गर्ग०, मथुरा० ५।९-१२ )

॥ इति श्रीगर्गसंहितायां मथुराखण्डे अक्रूर कृत श्रीकृष्ण स्तुति:॥

 

नारद जी कहते हैं – राजन ! जब इस प्रकार चकित होकर भगवान का वैभव देखते हुए अक्रूर जी इस प्रकार स्तुति कर रहे थे , उसी प्रकार श्रीकृष्ण अपने लिक सहित वहीँ अंतर्धान हो गए ।

 

अक्रूर कृत स्तुति करने के लाभ 

 

अक्रूर कृत श्रीकृष्ण स्तुति बहुत ही चमत्कारी पाठ है। यह स्तुति करने से कृष्ण प्रसन्न होते हैं । इस स्तुति को करने से सकरात्मक ऊर्जा का वास होता है और हर मनोकामना पूर्ण होती है । यह स्तुति बहुत ही शक्तिशाली है । इस स्तुति का पाठ करने से हर बीमारी से निजात मिलती है । अपने परिवार जनों का स्वस्थ्य ठीक रहता है और लम्बे समय से बीमार व्यक्ति को इस स्तुति का पाठ सच्चे मन से करने पर रोग मुक्त हो जाता है। यदि मनुष्य जीवन की सभी प्रकार के भय, डर से मुक्ति चाहता है तो वह इस स्तुति का पाठ करे।

 

 

 

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