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गर्ग संहितान्तर्गत नाग-पत्न्य कृत कृष्ण स्तुति
॥ मूलपाठ ॥
॥ नागपत्न्यक ऊचुः ॥
नमः श्रीकृष्णचंद्रय गोलोकपतये नमः ।
असंख्यांडाधिपते परिपूर्णतमाय ते ॥ १८ ॥
नाग पत्नियाँ बोलीं – हे भगवन! आप परिपूर्ण परमात्मा और असंख्य ब्रह्माण्डों के अधिपति हैं। हे गोलोकनाथ श्रीकृष्णचन्द्र ! आप को हमारा बारंबार प्रणाम है ॥ १८ ॥
Namah Shrikrishnachandraya Golokpatye namah
Asankhyandaadhipate paripoorntamaya te.18
The snake wives said – Oh God! You are the perfect God and the ruler of innumerable universes. O Goloknath Shri Krishnachandra! We salute you again and again. 18 ॥
श्रीराधापतये तुभ्यं व्रजाधीशाय ते नमः ।
नमः श्रीनंदपुत्राय यशोदानंदनाय ते ॥ १९ ॥
हे व्रज के अधीश्वर ! हे श्रीराधावल्लभ ! आप को नमस्कार है। हे नन्द के लाला ! हे यशोदा नन्दन ! आप को नमस्कार है ॥ १९ ॥
Shri Radhapataye tubhyam vrajadheeshaya te namah
namah shrinandputraya yashodanandnaya te.19
O Lord of Vraj! O Shriradhavallabh! Greetings to you. O son of Nand! O Yashoda Nandan! Greetings to you . 19 ॥
पाहि पाहि परदेव पन्नगं
त्वत्परं न शरणं जगत्त्रये ।
त्वम् पदात्परतरो हरिः स्वयं
लीलया किल तनोषि विग्रहम् ॥ २० ॥
हे परमदेव ! आप इस नाग की रक्षा कीजिये ! रक्षा कीजिये। तीनों लोकों में आपके सिवा दूसरा कोई इसे शरण देने वाला नहीं है। आप स्वयं साक्षात श्री हरि हैं और अपनी लीला के कारण ही स्वच्छन्दतापूर्वक अपने नाना प्रकार के श्रीविग्रहों का विस्तार करते हैं ॥ १९ ॥
Paahi Paahi Pardev Pannagam
tvatparam n sharanam jagattraye
tvam padaatpartaro harih svayam
leelya kil tanoshi vigraham.20
O Supreme God! You protect this snake! Please protect. Apart from you, there is no one else in the three worlds who can give it shelter. You yourself are Shri Hari and because of your Leela, you freely expand your various kinds of incarnations.20
इति नागपत्नीकृतकृष्णस्तुतिः हिन्दी भावार्थ सहित समाप्त ।
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