कबीर संगति साधु की , कदे न निर्फल होई ।
चन्दन होसी बाँवना , नीब न कहसी कोई ।
कबीर कहते हैं कि साधु की संगति कभी निष्फल नहीं होती। चन्दन का वृक्ष यदि छोटा भी होगा तो भी उसे कोई नीम का वृक्ष नहीं कहेगा। वह सुवासित ही रहेगा और अपने आस – पास के वातावरण में सुगंध ही बिखेरेगा। अपने आस-पास को खुशबू से ही भरेगा। ईश्वर की भक्ति करने का फल अवश्य ही मिलता है उसमे देर सवेर हो सकती है। साधु की संगति भी निष्फल नहीं जाती है और यह नीम को भी चंदन बना देती है, फिर उसे नीम कोई नहीं कहेगा। भाव है कि साधु की संगति व्यक्ति के समस्त दुर्गुणों को दूर कर देती है। हमें संतजन और साधुओं की संगति अवश्य ही करनी चाहिए।