करता था तो क्यूं रहया, अब करि क्यूं पछिताय ।
बोये पेड़ बबूल का, अम्ब कहाँ ते खाय ।
यदि तू अपने को कर्ता समझता था तो चुप क्यों बैठा रहा? और अब कर्म करके पश्चात्ताप क्यों करता है? जब पेड़ तो बबूल का लगाया है फिर आम खाने को कहाँ से मिलें ? तात्पर्य यह है कि जब तू बुरे कार्यों को करता था, सन्तों के समझाने पर भी नहीं समझा तो अब क्यों पछता रहा है। जब तूने कांटों वाले बबूल का पेड़ बोया तो बबूल ही उत्पन्न होगें आम कहां से खायेगा। अर्थात् जो प्राणी जैसा करता है, कर्म के अनुसार ही उसे फल मिलता है।