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राधाष्टकम श्री निम्बार्काचार्य द्वारा रचित 8 पदों की अत्यंत सुन्दर रचना है जिसमें उन्होंने श्री राधा रानी की महिमामयी स्तुति की है तथा उनकी कृपा की याचना की है । राधाष्टकम का पाठ करने वाले जातकों पर सदैव श्री राधा रानी और श्री कृष्ण की कृपा बनी रहती है । इस का पाठ करने और सुनने वाले भक्तों पर श्री राधा और कृष्ण सदैव प्रसन्न रहते हैं ।
नमस्ते श्रियै राधिकायै परायै
नमस्ते नमस्ते मुकुन्दप्रियायै।
सदानन्दरूपे प्रसीद त्वमन्तः-
प्रकाशे स्फुरन्ती मुकुन्देन सार्धम्।।1।।
श्री राधिके ! तुम्हीं श्री लक्ष्मी हो , तुम्हें नमस्कार है , तुम्हीं पराशक्ति राधिका हो , तुम्हें नमस्कार है । तुम मुकुंद की प्रियतमा हो , तुम्हें नमस्कार है । सदानंदस्वरूपे देवी ! तुम मेरे अन्तः करण के प्रकाश में श्याम सुन्दर श्री कृष्ण के साथ सुशोभित होती हुई मुझ पर प्रसन्न हो जाओ ।।1।।
स्ववासोपहारं यशोदासुतं वा
स्वदध्यादिचौरं समाराधयन्तीम्।
स्वदाम्नोदरे या बबन्धाशु नीव्या
प्रपद्ये नु दामोदरप्रेयसीं ताम्।।2।।
मैं आपको प्रणाम करता हूँ जिन्होंने अपने वस्त्र का अपहरण करने वाले और दूध दही, माखन चुराने वाले यशोदा नंदन भगवान श्री कृष्ण की आराधना करती हैं । माँ यशोदा ने अपने नीवी ( प्रेम की डोर ) के बंधन से भगवान को बांध लिया था, और उनका नाम दामोदर हो गया। उन भगवान दामोदर प्रियतमा श्री राधा रानी को मैं प्रणाम करता हूँ।।2।।
दुराराध्यमाराध्य कृष्णं वशे तं
महाप्रेमपूरेण राधाभिधाभूः।
स्वयं नामकीर्त्या हरौ प्रेम यच्छत्
प्रपन्नाय मे कृष्णरूपे समक्षम्।।3।।
हे श्रीराधे ! जिन भगवान श्री कृष्ण की आराधना कठिन है, उन भगवान की आराधना करके आपने प्रेमसिन्धु की बाढ़ से उन्हें वश में कर लिया। श्री कृष्ण की आराधना के कारण आप राधा नाम से प्रसिद्ध है। श्रीकृष्णस्वरूपे ! यह नाम अपने स्वयं ही किया है, आपके सम्मुख आये मुझ शरणागत को श्री हरि का प्रेम प्रदान करो।।3।।
मुकुन्दस्त्वया प्रेमडोरेण बद्धः
पतङ्गो यथा त्वामनुभ्राम्यमाणः।
उपक्रीडयन् हार्दमेवानुगच्छन्
कृपावर्तते कारयातो मयीष्टिम्।।4।।
आपके प्रेम की डोर में बंधे हुए भगवान श्री कृष्ण आपके आस – पास पतंगे की भांति चक्कर लगाते रहते हैं , हार्दिक प्रेम का अनुसरण कर के वह आपके साथ ही रहते हैं और क्रीड़ा करते हैं , हे राधारानी ! आप अपनी कृपा करिये और मेरे द्वारा भगवान् की आराधना करवाईये।।4।।
व्रजन्तीं स्ववृन्दावने नित्यकालं
मुकुन्देन साकं विधायाङ्कमालाम्
समामोक्ष्यमाणानुकम्पाकटाक्षैः
श्रियं चिन्तये सच्चिदानन्दरूपाम्।।5।।
जो प्रतिदिन नित्य समय पर श्री कृष्ण भगवान को अपने अंक की पुष्प माला अर्पित करके अपनी लीला भूमि वृन्दावन में विहार करती हैं। भक्त जनों पर प्रयुक्त होने वाले कृपा कटाक्षों से सुशोभित सच्चिदानंद स्वरूपा श्री राधा का चिंतन करिये।।5।।
मुकुन्दानुरागेण रोमाञ्चिताङ्गै-
रहं वेप्यमानां तनुस्वेदबिन्दुम्।
महाहार्दवृष्ट्या कृपापाङ्गदृष्ट्या
समालोकयन्तीं कदा मां विचक्षे।।6।।
हे श्री राधे ! आपके मन प्राणों में आनंदकंद भगवान श्रीकृष्ण का प्रगाढ़ अनुराग व्याप्त है इसलिए आपके श्री अंग सदा रोमांच से विभूषित है और अंग-अंग सूक्ष्म स्वेदबिंदुओं से सुशोभित होता है। आप अपनी कृपा दृष्टि और प्रेम सागर से मुझे देख रही हैं , इस अवस्था में मुझे कब आपका दर्शन होगा।।6।।
यदङ्कावलोके महालालसौघं
मुकुन्दः करोति स्वयं ध्येयपादः।
पदं राधिके ते सदा दर्शयान्तर्
हृदिस्थं नमन्तं किरद्रोचिषं माम्।।7।।
हे श्री राधे ! भगवान श्याम सुन्दर ऐसे हैं कि उनके चरणों का चिंतन करना चाहिए तथापि वे आपके चरणों के अवलोकन की अभिलाषा करते हैं । देवि ! मैं आपको प्रणाम करता हूँ। मेरे हृदय के अंतःकरण के ह्रदय देश में ज्योति पुंज बिखेरते हुए आप अपने चिंतनीय चरणों का दर्शन कराईये।।7।।
सदा राधिकानाम जिह्वाग्रतः स्यात्
सदा राधिकारूपमक्ष्यग्र आस्ताम्।
श्रुतौ राधिकाकीर्तिरन्तःस्वभावे
गुणा राधिकायाः श्रिया एतदीहे।।8।।
मेरी जिह्वा के अग्रभाग पर श्री राधा का ही नाम विराजमान रहे, मेरे नेत्रों के समक्ष सदा श्री राधा का रूप ही प्रकाशित हो। मेरे कानों को श्री राधा रानी की कीर्ति कथा सुनाई दे और अंतर में श्री लक्ष्मी स्वरुपा श्री राधा रानी के ही गुणों का चिंतन हो यही मेरी कामना है।।8।।
इदं त्वष्टकं राधिकायाः प्रियायाः
पठेयुः सदैवं हि दामोदरस्य।
सुतिष्ठन्ति वृन्दावने कृष्णधाम्नि
सखीमूर्तयो युग्मसेवानुकूलाः।।9।।
दामोदर प्रिय श्री राधा रानी की स्तुति का पाठ करने वाले लोग सदा इस रूप में पाठ करते हैं वे श्री कृष्ण धाम वृन्दावन में युगल सरकार की सेवा के अनुकूल शरीर पाकर सुख से रहते हैं , मैं श्री राधा रानी आपको प्रणाम करता हूँ ।। 9।।
इति श्रीभगवन्निम्बार्कमहामुनीन्द्रविरचितं श्रीराधाष्टकं सम्पूर्णम्।
इस प्रकार श्री भगवन निम्बार्क महामुनींद्र विरचित श्री राधाष्टक सम्पूर्ण हुआ ।।
श्री राधाष्टकम पढ़ने के लाभ
श्री राधाष्टकम का पाठ करने और सुनने वाले जातक इस संसार में सुख प्राप्त कर के अंत में जीवन मरण चक्र से मुक्त हो जाते हैं और श्री युगल सरकार के धाम में स्थान प्राप्त करते है तथा उनका सानिध्य पाकर धन्य होते हैं ।
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