अक्षरब्रह्मयोग- आठवाँ अध्याय
01-07 ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर
अधियज्ञः कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन ।
प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभिः ॥8.2৷৷
अधियज्ञः-यज्ञ के कर्मकाण्डों के स्वामी; कथम् – किस प्रकार से; क:-कौन; अत्र-यहाँ; देहे-शरीर में; अस्मिन्-इस; मधुसूदन-मधु नाम के असुर का दमन करने वाले, श्रीकृष्णः ; प्रयाणकाले-मृत्यु के समय; च-तथा; कथम्-कैसे; ज्ञेयः-जानना; असि-सकनाः-नियत-जानना; आत्मभिः-दृढ़ मन वालो द्वारा।
अर्जुन ने पूछा – हे मधुसूदन!
यहाँ अधियज्ञ अर्थात यज्ञ का स्वामी कौन है? और वह इस शरीर में कैसे रहता है? तथा दृढ़ मन से आपकी भक्ति में लीन रहने वाले मनुष्य अंत समय में आप को किस प्रकार जान पाते हैं॥8.2॥
(‘अधियज्ञः कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्’ – इस प्रकरण में अधियज्ञ शब्द से किसको लेना चाहिये ? वह,अधियज्ञ इस देह में कैसे है ? ‘मधुसूदन प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभिः’ – हे मधुसूदन ! जो पुरुष वशीभूत अन्तःकरण वाले हैं अर्थात् जो संसार से सर्वथा हटकर अनन्यभाव से केवल आप में ही लगे हुए हैं उनके द्वारा अन्तकाल में आप कैसे जानने में आते हैं ? अर्थात् वे आपके किस रूप को जानते हैं ? और किस प्रकार से जानते हैं ? अब भगवान आगे के दो श्लोकों में अर्जुन के छः प्रश्नों का क्रम से उत्तर देते हैं – स्वामी रामसुखदास जी )