मनहिं मनोरथ छांडी दे, तेरा किया न होइ ।
पाणी मैं घीव नीकसै, तो रूखा खाई न कोइ ।
मनुष्य मात्र को समझाते हुए कबीर कहते हैं कि मन की इच्छाएं छोड़ दो , उन्हें तुम अपने बल पर पूर्ण नहीं कर सकते। यदि पानी से घी निकल आए, तो रूखी रोटी कोई भी न खाएगा।
मनहिं मनोरथ छांडी दे, तेरा किया न होइ ।
पाणी मैं घीव नीकसै, तो रूखा खाई न कोइ ।
मनुष्य मात्र को समझाते हुए कबीर कहते हैं कि मन की इच्छाएं छोड़ दो , उन्हें तुम अपने बल पर पूर्ण नहीं कर सकते। यदि पानी से घी निकल आए, तो रूखी रोटी कोई भी न खाएगा।
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