दीपक सुन्दर देखि करि, जरि जरि मरे पतंग।
बढ़ी लहर जो विषय की, जरत न मारै अंग।।
प्रज्जवलित दीपक की सुन्दर लौ को देख कर कीट पतंग मोह पाश में बंधकर उसके ऊपर मंडराते हैं और जल जलकर मरते हैं। ठीक इस प्रकार विषय वासना के मोह में बंधकर कामी पुरूष अपने जीवन के वास्तविक लक्ष्य से भटक कर दारूण दुख भोगते हैं।