भक्ति पदारथ तब मिले, जब गुरू होय सहाय।
प्रेम प्रीति की भक्ति जो, पूरण भाग मिलाय।।
कबीर जी कहते हैं कि भक्ति रूपी अनमोल तत्व की प्राप्ति तभी होती है जब गुरू सहायक होते हैं, गुरू की कृपा के बिना भक्ति रूपी अमृत रस को प्राप्त कर पाना पूर्णतया असम्भव है।