Kabir das ke dohe hindi arth sahit

 

 

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माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।

आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ।

 

कबीर दास जी कहते हैं कि शरीर, मन, माया सब नष्ट हो जाता है परन्तु मन में उठने वाली आषा और तृष्णा कभी नष्ट नहीं होती। अर्थात संसार में रहते हुए न माया मरती है न मन। शरीर न जाने कितनी बार मर चुका पर मनुष्य की आशा और तृष्णा कभी नहीं मरती। इसलिए संसार की मोह तृष्णा आदि में नहीं फंसना चाहिए।भोग से हमारी इच्छाओं की तृप्ति नहीं होती और मन की असंख्य इच्छाएं भी समाप्त नहीं होतीं हैं । इसलिए कहा गया है मन ही बंधन और मन ही मोक्ष का कारण है । साधना कर के मन को विषयों के आकर्षण से मुक्त करना ही एकमात्र उयाय है । शरीर के वृद्ध होने तक मन कितना भी माया में लिप्त होकर उपभोग करे परन्तु मन की आसक्ति कम नहीं होती । अतः साधना कर के इंद्रियों को वश में करना ही एकमात्र उपाय है ।

 

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