Kabir das ke dohe hindi arth sahit

 

 

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माया तो ठगनी भई, ठगत फिरै सब देस।
जा ठग ने ठगनी ठगी, ता ठग को आदेस।।

 

यह माया अनेक रूप धारण करके सभी देशों के लोगों को ठगती है और सभी इसके चक्कर में फंस कर ठगे जाते हैं परन्तु जिस ठग ने इस ठगनी को भी ठग लिया हो उस महान ठग को मेरा शत शत प्रणाम है। भावार्थ यह कि माया रूपी ठगनी को कोई संत महापुरूष ही ठग सकता है।

 

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