Lord Jagannath

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Lord Jagannath

 

 

श्रीजगन्नाथ पंचकम उड़ीसा के पुरी मंदिर के श्रीजगन्नाथ स्वामी की स्तुति और प्रार्थना का श्लोक है। पुरी को मूल रूप से पुरूषोत्तम क्षेत्र कहा जाता था। भगवान जगन्नाथ श्री महाविष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण की अभिव्यक्ति हैं। ” जगन्नाथ “ का अर्थ है सम्पूर्ण ब्रह्मांड के भगवान। इस मंदिर के उद्भव का उल्लेख ब्रह्म पुराण में मिलता है।

जगन्नाथ पञ्चकं में पाँच श्लोक हैं जिनमें से प्रत्येक में भगवान जगन्नाथ की विशेषताओं का वर्णन है। 

 

 

श्री जगन्नाथ पञ्चकम्

 

 

श्री जगन्नाथ पञ्चकम्

 

रक्ताम्भोरुहदर्पभञ्जनमहासौन्दर्यनेत्रद्वयम्

मुक्ताहारविलंबिहेममकुटं रत्नोज्ज्वलत् कुण्डलम् ।

वर्षामेघसमाननीलवपुषं ग्रैवेयहारान्वितम्

पार्श्वे चक्रधरं प्रसन्नवदनं नीलाद्रिनाथं भजे ॥ १ ॥

 

मैं भगवान के अति सुन्दर नेत्रों की स्तुति करता हूं जो लाल वर्ण कमलों के गर्व को भी कम कर देती हैं। वह मोतियों से बनी माला, स्वर्ण मुकुट और चमकदार रत्नजड़ित कानों के आभूषणों से सुशोभित हैं। वह जल से भरे वर्षा कालीन मेघों के समान नील वर्ण  हैं। वह गले में हार धारण किये हैं । उनके बगल में श्री-चक्र है और उनका चेहरा देखने में बहुत सुखद है। नील पर्वत के स्वामी को मेरा विनम्र प्रणाम।।1।।

 

फुल्लेन्दीवरलोचनं नवघनश्यामाभिरामाकृतिम्

विश्वेशं कमलाविलासविलसत् पादारविन्दद्वयम् ।

दैत्यारिं सकलेन्दुमण्डितमुखं चक्राब्जहस्तद्वयम्

वन्दे श्री पुरुषोत्तमं प्रतिदिनं लक्ष्मीनिवासालयम् ॥ २ ॥

 

मैं उस भगवान की स्तुति करता हूं जिनकी आंखें खिले हुए कमल के फूल के समान हैं। वह गहरे नीले काले रंग में अति सुंदर दिख रहे हैं। वह ब्रह्मांड के ईश्वर हैं । उनके पवित्र चरणकमलों की पूजा कमल पर विराजमान श्री ब्रह्मा द्वारा की जाती है। वह सभी प्रकार के राक्षसों का विनाश कर देते हैं। उनका मुख चंद्रमा के समान है। उनके हाथों में श्रीचक्र और शंख हैं। उन भगवान को मेरा विनम्र नमस्कार, जो देवताओं में सर्वश्रेष्ठ हैं और श्री महालक्ष्मी के निवास स्थान हैं।।2।।

 

 

जगन्नाथ पंचकम् - Jagannatha panchakam lyrics

 

 

उद्यन्नीरदनीलसुन्दरतनुं पूर्णेन्दुबिम्बाननम्

राजीवोत्पलपत्रनेत्रयुगलं कारुण्यवारांनिधिम् ।

भक्तानां सकलार्तिनाशनकरं चिन्ताब्धिचिन्तामणिम्

वन्दे श्री पुरुषोत्तमं प्रतिदिनं नीलाद्रिचूडामणिम् ॥ ३ ॥

 

मैं उन प्रभु की स्तुति करता हूं जिनकी सुन्दर काया उभरते हुए मेघ के समान है। उनका मुख चन्द्रमा के समान देदीप्यमान है। उनकी आंखें पूर्णतया खिले हुए कमल के समान हैं। वह दया और करुणा का भण्डार हैं। वह अपने उत्कट भक्तों की परेशानियों और चिंताओं को कम कर देते हैं। वह अपने भक्तियुक्त भक्तों के विचारों के मूल में स्थित अनमोल रत्न हैं। वह देवताओं में सबसे महानतम भगवान हैं और वह नील पर्वत पर चमकदार आभूषण के रूप में विद्यमान हैं।।3।।

 

 

Lord Jagannath

 

 

नीलाद्रौ शङ्खमध्ये शतदलकमले रत्नसिंहासनस्थम्

सर्वालङ्कारयुक्तं नवघनरुचिरं संयुतं चाग्रजेन ।

भद्राया वामभागे रथचरणयुतं ब्रह्मरुद्रेन्द्रवन्द्यम्

वेदानां सारमीशं सुजनपरिवृतं ब्रह्मतातं स्मरामि ॥ ४ ॥

 

मैं नील पर्वत के स्वामी की स्तुति करता हूं जिनके पास शंख है और वे बहुमूल्य रत्नों से जड़ित सिंहासन पर विराजमान हैं। वह श्री ब्रह्मा को अपने मध्य भाग से निकले सौ पंखुड़ियों वाले कमल पर धारण करते हैं। वह पूर्णतः उत्तम साज-सज्जा से सुसज्जित है। उनके बगल में उनके भ्राता हैं। वह अपना पैर रथ के बायीं ओर रखते हैं। उनकी पूजा श्री ब्रह्मा, श्री शिव और इंद्र करते हैं। वह वेदों का सार और मूल है। वह अच्छे और धर्मनिष्ठ लोगों से घिरे रहते हैं। वह ब्रह्म का मूल हैं। उन प्रभु को मेरा विनम्र प्रणाम।।4।।

 

 

Jagannath panchakam - जगन्नाथ पंचकम्

 

 

दोर्भ्यां शोभितलाङ्गलं समुसलं कादम्बरीचञ्चलम्

रत्नाढ्यं वरकुण्डलं भुजबलेनाक्रान्तभूमण्डलम् ।

वज्राभामलचारुगण्डयुगलं नागेन्द्रचूडोज्ज्वलम्

संग्रामे चपलं शशाङ्कधवलं श्रीकामपालं भजे ॥ ५ ॥

 

मैं उन प्रभु की स्तुति करता हूं जो लंगर और गदा धारण करते हैं । वह इनका प्रयोग शत्रुओं को परेशान करने के लिए करते हैं। वह रत्नजड़ित कर्ण आभूषणों से सुसज्जित हैं। वह संसार के स्वामी हैं। उनके कपोल दाग रहित हैं। वह नागराज से निकली हुई मणि के समान चमकते हैं। वह चंद्रमा के समान देदीप्यमान है। वह प्रेम के परमेश्वर की रक्षा करते हैं। युद्ध क्षेत्र में राज करने वाले भगवान को मेरा विनम्र नमस्कार।।5।।

 

 

इति श्री जगन्नाथ पञ्चकं समाप्तं

Thus Jagannath Panchakam Ends

 

 

 

 

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