दैवासुरसम्पद्विभागयोग- सोलहवाँ अध्याय
अथ षोडशोऽध्यायः- दैवासुरसम्पद्विभागयोग
आसुरी संपदा वालों के लक्षण और उनकी अधोगति का कथन
असौ मया हतः शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि।
ईश्वरोऽहमहं भोगी सिद्धोऽहं बलवान्सुखी॥16.14॥
असौ-वह; मया – मेरे द्वारा; हतः-मारा गया; शत्रुः-शत्रु; हनिष्ये-मैं मारूंगा ; च-और; अपरान्-अन्यों को; अपि-भी; ईश्वरः-भगवान; अहम्-मैं हूँ; अहम्- मैं हूँ; भोगी-भोक्ता; सिद्धः-सिद्ध; अहम्-मैं; बलवान्- शक्तिशाली; सुखी-प्रसन्न
” वह शत्रु मेरे द्वारा मारा गया है और मैं उन दूसरे शत्रुओं को भी मारूंगा”, “मैं ईश्वर हूँ और भोक्ता हूँ”, “मैं सिद्ध पुरुष हूँ”, “मैं बलवान और सुखी हूँ” अर्थात मैंने अपने उस शत्रु का नाश कर दिया है और मैं अन्य शत्रुओं का भी विनाश करूंगा। मैं सर्व समर्थ हूँ, मैं स्वयं भगवान हूँ, मैं भोक्ता हूँ, मैं शक्तिशाली हूँ, मैं सुखी हूँ, मेरे पास अपार धन संपत्ति और भोग सामग्री है, मैं सब सिद्धियों से युक्त हूँ॥16.14॥
आसुरीसम्पदावाले व्यक्ति क्रोध के परायण होकर इस प्रकार के मनोरथ करते हैं – असौ मया हतः शत्रुः – वह हमारे विपरीत चलता था , हमारे साथ वैर रखता था उसको तो हमने मार दिया है और ‘हनिष्ये चापरानपि’ – दूसरे जो भी हमारे विपरीत चलते हैं , हमारे साथ वैर रखते हैं , हमारा अनिष्ट सोचते हैं उनको भी हम मजा चखा देंगे , मार डालेंगे। ईश्वरोऽहम् – हम धन , बल , बुद्धि आदि में सब तरह से समर्थ हैं। हमारे पास क्या नहीं है , हमारी बराबरी कोई कर सकता है क्या ? ‘अहं भोगी’ – हम भोग भोगने वाले हैं। हमारे पास स्त्री , मकान , कार आदि कितनी भोग सामग्री है । सिद्धोऽहम् – हम सब तरह से सिद्ध हैं। हमने तो पहले ही कह दिया था न वैसे हो गया कि नहीं । हमारे को तो पहले से ही ऐसा दिखता है ये जो लोग भजन , स्मरण , जप , ध्यान आदि करते हैं ये सभी किसी के बहकावेमें आये हुए हैं। अतः इनकी क्या दशा होगी? उसको हम जानते हैं। हमारे समान सिद्ध और कोई है संसार में हमारे पास अणिमा , गरिमा आदि सभी सिद्धियाँ हैं। हम एक फूँक में सबको भस्म कर सकते हैं। बलवान – हम बड़े बलवान हैं। अमुक आदमी ने हमारे से टक्कर लेनी चाही तो उसका क्या नतीजा हुआ आदि परन्तु जहाँ स्वयं हार जाते हैं वह बात दूसरों को नहीं कहते । जिससे कि कोई हमें कमजोर न समझ ले। उन्हें अपने हारने की बात तो याद भी नहीं रहती पर अभिमान की बात उन्हें याद रहती है। सुखी – हमारे पास कितना सुख है आराम है। हमारे समान सुखी संसार में कौन है ? ऐसे व्यक्तियों के भीतर तो जलन होती रहती है पर ऊपर से इस प्रकार की डींग हाँकते हैं।