साहिब तेरी साहिबी, सब घट रही समाय।
ज्यों मेंहदी के पात में, लाली लखी न जाय।।
संत जी कहते हैं कि हे प्रभु! हे जगदीश्वर! तुम घट घट वासी हो। हर प्राणी के हदय में निवास करते हो किन्तु अज्ञानी लोग अपनी अज्ञानता के कारण तुम्हें देख नहीं पाते जिस प्रकार मेंहदी के हरे पत्तों में लाली छिपी रहती है उसे सिल बट्टे से पीसकर हाथ में लगाओ तब उसकी लाली निखर आती है उसी प्रकार मन रूपी मेंहदी को ध्यान और सुमिरन रूपी सिलबट्टे से पीसो। अर्थात् अपने को परमात्मा में लीन कर दो।
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