भक्तन की यह रीति है, बंधे करे जो भाव।
परमारथ के कारने, यह तन रहो कि जाव।।
भक्तों की यह रीति है वे अपने मन एवं इन्द्रिय को पूर्णतया अपने वश में करके सच्चे मन से गुरू की सेवा करते हैं। लोगों के उपकार हेतु ऐसे सज्जन प्राणी अपने शरीर की परवाह नहीं करते। शरीर रहे अथवा मिट जाये परन्तु अपने सज्जनता रूपी कर्तव्य से विमुख नहीं होते।