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VishwaRoopDarshanYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 11
विश्वरूपदर्शनयोग ~ अध्याय ग्यारह
अथैकादशोऽध्यायः- विश्वरूपदर्शनयोग
15 – 31 अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना
अमी च त्वां धृतराष्ट्रस्य पुत्राः सर्वे सहैवावनिपालसंघैः ।
भीष्मो द्रोणः सूतपुत्रस्तथासौ सहास्मदीयैरपि योधमुख्यैः ॥11.26।।
वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति दंष्ट्राकरालानि भयानकानि ।
केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु सन्दृश्यन्ते चूर्णितैरुत्तमाङ्गै ॥11.27।।
अमी-ये; च-भी; त्वाम्-आपको; धृतराष्ट्रस्य-धृतराष्ट्र के पुत्राः-पुत्र; सर्वे – सभी; सह-सहित; एव-निश्चय ही; अवनिपाल–सहयोगी राजाओं के साथ; सड्.घैः-समूह; भीष्मः-भीष्म पितामह; द्रोणः-द्रोणाचार्य; सूतपुत्रः-सूर्यपुत्र, कर्ण; तथा – भी; असौ – यह; सह-साथ; अस्मदीयैः-हमारी ओर के; अपि-भी; योधामुख्यैः-महा सेना नायक; वक्त्रणि-मुखों में; ते-आपके; त्वरमाणाः-तीव्रता से; विशन्ति – प्रवेश कर रहे हैं; दंष्ट्रा-दाँत; करालानि – विकराल; भयानकानि–भयानक; केचित्-उनमें से कुछ; विलग्नाः-लगे रहकर; दशन अन्तरेषु–दाँतों के बीच में; सन्दृश्यन्ते-दिख रहे हैं; चूर्णित:-पीसते हुए; उत्तम अडगैः-शिरों से।
वे सभी धृतराष्ट्र के पुत्र अपने सहयोगी राजाओं के समुदाय सहित और भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, वह कर्ण और हमारे पक्ष के भी महा सेना नायक सबके सब आपके दांतों के कारण विकराल भयानक मुखों में बड़े वेग से दौड़ते हुए प्रवेश कर रहे हैं और इनमें से कुछ के सिरों को मैं आपके विकराल दांतों के बीच पिसते हुए देख रहा हूँ॥11.26-11.27॥
( ‘भीष्मो द्रोणः सूतपुत्रस्तथासौ सहास्मदीयैरपि योधमुख्यैः ‘ – हमारे पक्ष के धृष्टद्युम्न , विराट , द्रुपद आदि जो मुख्य-मुख्य योद्धा लोग हैं वे सब के सब धर्म के पक्ष में हैं और केवल अपना कर्तव्य समझ कर युद्ध करने के लिये आये हैं। हमारे इन सेनापतियों के साथ पितामह भीष्म , आचार्य द्रोण और वह प्रसिद्ध सूतपुत्र कर्ण आपमें प्रविष्ट हो रहे हैं। यहाँ भीष्म , द्रोण और कर्ण का नाम लेने का तात्पर्य है कि ये तीनों ही अपने कर्तव्य का पालन करने के लिये युद्ध में आये थे (टिप्पणी प0 591)। ‘अमी च त्वां धृतराष्ट्रस्य पुत्राः सर्वे सहैवावनिपालसङ्घैः ‘ – दुर्योधन के पक्षमें जितने राजा लोग हैं जो युद्ध में दुर्योधन का प्रिय करना चाहते हैं (गीता 1। 23) अर्थात् दुर्योधन को हित की सलाह नहीं दे रहे हैं उन सभी राजाओं के समूहों के साथ धृतराष्ट्र के दुर्योधन और दुःशासन आदि सौ पुत्र विकराल दाढ़ों के कारण अत्यन्त भयानक आपके मुखों में बड़ी तेजी से प्रवेश कर रहे हैं – स्वामी रामसुखदास जी )
(‘वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति दंष्ट्राकरालानि भयानकानि।’ विराट रूप में वे चाहे भगवान में प्रवेश करें , चाहे भगवान के मुखों में जाएं वह एक ही लीला है परन्तु भावों के अनुसार उनकी गतियाँ अलग-अलग प्रतीत हो रही हैं। इसलिये भगवान में जाएं अथवा मुखों में जाएं वे हैं तो विराट रूप में ही। ‘केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु संदृश्यन्ते चूर्णितैरुत्तमाङ्गैः ‘ – जैसे खाद्य पदार्थों में कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जो चबाते समय सीधे पेट में चले जाते हैं पर कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जो चबाते समय दाँतों और दाढ़ों के बीच में फँस जाते हैं। ऐसे ही आपके मुखों में प्रविष्ट होने वालों में से कई एक तो सीधे भीतर (पेट में) चले जा रहे हैं पर कई एक चूर्ण हुए मस्तकों सहित आपके दाँतों और दाढ़ों के बीच में फँसे हुए दिख रहे हैं। यहाँ एक शङ्का होती है कि योद्धा लोग तो अभी सामने युद्धक्षेत्र में ख़ड़े हुए हैं फिर वे अर्जुन को विराट रूप के मुखों में जाते हुए कैसे दिखायी दिये ? इसका समाधान यह है कि भगवान् विराट रूप में अर्जुन को भविष्य की बात दिखा रहे हैं। भगवान ने विराट रूप दिखाते समय अर्जुन से कहा था कि तू और भी जो कुछ देखना चाहता है वह भी मेरे इस विराट रूप में देख ले (11। 7)। अर्जुन के मन में सन्देह था कि युद्ध में हमारी जीत होगी या कौरवों की (2। 6) इसलिये उस सन्देह को दूर करने के लिये भगवान अर्जुन को आसन्न भविष्य का दृश्य दिखाकर मानो यह बताते हैं कि युद्ध में तुम्हारी ही जीत होगी। आगे अर्जुन के द्वारा प्रश्न करने पर भी भगवान ने यही बात कही है (11। 32 — 34)। जो अपना कर्तव्य समझकर धर्म की दृष्टि से युद्ध में आये हैं और जो परमात्मा की प्राप्ति चाहने वाले हैं – ऐसे पुरुषों का विराट रूप में नदियों के दृष्टान्त से प्रवेश करने का वर्णन अर्जुन आगे के श्लोक में करते हैं – स्वामी रामसुखदास जी )