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VishwaRoopDarshanYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 11
विश्वरूपदर्शनयोग ~ अध्याय ग्यारह
अथैकादशोऽध्यायः- विश्वरूपदर्शनयोग
05 – 08 भगवान द्वारा अपने विश्व रूप का वर्णन
इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम् ।
मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्द्रष्टमिच्छसि ॥11.7।।
इह-यहाँ; एकस्थम्-एक स्थान पर एकत्रित; जगत्-ब्रह्माण्ड; कृत्स्नम्-समस्त; पश्य-देखो; अद्य-अब; स-सहित; चर-चलने वाले; अचरम्- जड ; मम-मेरे; देहे-एक शरीर में; गुडाकेश-निद्रा पर विजय पाने वाला, अर्जुन; यत्-जो; च-भी; अन्यत्-अन्य, और; द्रष्टुम् – देखना; इच्छसि-तुम चाहते हो।
हे अर्जुन! अब मेरे शरीर में एक ही स्थान पर स्थित चराचर सहित सम्पूर्ण जगत और सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों को देखो तथा इसके अतिरिक्त तुम और भी जो कुछ देखना चाहते हो सो देखो॥11.7॥
(गुडाकेश- निद्रा को जीतने वाला होने से अर्जुन का नाम ‘गुडाकेश’ हुआ था)
( ‘गुडाकेश’ – निद्रा पर अधिकार प्राप्त करने से अर्जुन को गुडाकेश कहते हैं। यहाँ यह सम्बोधन देने का ता त्पर्य है कि तू निरालस्य होकर सावधानी से मेरे विश्वरूप को देख। ‘इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम् मम देहे’ – 10वें अध्याय के अन्त में भगवान ने कहा था कि मैं सम्पूर्ण जगत को एक अंश से व्याप्त करके स्थित हूँ। इसी पर अर्जुन के मन में विश्वरूप देखने की इच्छा हुई। अतः भगवान कहते हैं कि हाथ में घोड़ों की लगाम और चाबुक लेकर तेरे सामने बैठे हुए मेरे इस शरीर के एक देश (अंश ) में चर -अचर सहित सम्पूर्ण जगत को देख। एक देश में देखने का अर्थ है कि तू जहाँ दृष्टि डालेगा वहीं तेरे को अनन्त ब्रह्माण्ड दिखेंगे। तू मनुष्य , देवता , यक्ष , राक्षस , भूत , पशु , पक्षी आदि चलने-फिरने वाले जङ्गम और वृक्ष , लता , घास , पौधा आदि स्थावर तथा पृथ्वी , पहाड़ , रेत आदि जडसहित सम्पूर्ण जगत को अद्य – अभी , इसी क्षण देख ले , इसमें देरी का काम नहीं है। ‘यच्चान्यद्द्रष्टुमिच्छसि ‘ – भगवान के शरीर में सब बातें वर्तमान थीं अर्थात् जो बातें भूतकाल में बीत गयी हैं और जो भविष्य में बीतने वाली हैं , वे सब बातें भगवान के शरीर में वर्तमान थीं। इसलिये भगवान कहते हैं कि तू और भी जो कुछ देखना चाहता है? वह भी देख ले। अर्जुन और क्या देखना चाहते थे ? युद्ध में जीत हमारी होगी या कौरवों की (गीता 2। 6) इसलिये भगवान कहते हैं कि वह भी तू मेरे इस शरीर के एक अंश में देख ले। विशेष बात – जैसे 10वें अध्याय में भगवान से जो मेरी विभूति और योग को तत्त्व से जानता है उसका मेरे में दृढ़ भक्तियोग हो जाता है । इस बात को सुनकर ही अर्जुन ने भगवान की स्तुति-प्रार्थना करके विभूतियाँ पूछी थीं । ऐसे ही भगवान से इस बात को सुनकर कि मेरे एक अंश में सारा संसार स्थित है , अर्जुन ने विश्वरूप दिखाने के लिये प्रार्थना की है। अगर भगवान अपनी ही तरफ से मेरे किसी एक अंश में सम्पूर्ण जगत स्थित है , यह बात न कहते तो अर्जुन विश्वरूप देखने की इच्छा ही नहीं करते। जब इच्छा ही नहीं करते तो फिर विश्वरूप दिखाने के लिये प्रार्थना कैसे करते ? और जब प्रार्थना ही नहीं करते तो फिर भगवान अपना विश्वरूप कैसे दिखाते ? इससे सिद्ध होता है कि भगवान कृपापूर्वक अपनी ओर से ही अर्जुन को अपना विश्वरूप दिखाना चाहते हैं। ऐसी बात गीता के आरम्भ में भी आयी है। जब अर्जुन ने भगवान से दोनों सेनाओं के बीच में रथ खड़ा करने के लिये कहा तब भगवान ने रथ को पितामह भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने खड़ा किया और अर्जुन से कहा – इन कुरुवंशियों को देखो – ‘कुरून् पश्य ‘ (1। 25)। इसका यही आशय मालूम देता है कि भगवान कृपापूर्वक गीता प्रकट करना चाहते हैं। कारण कि यदि भगवान ऐसा न कहते तो अर्जुन को शोक नहीं होता और गीता का उपदेश आरम्भ नहीं होता। तात्पर्य है कि भगवान ने अपनी तरफ से कृपा करके ही गीता को प्रकट किया है। भगवान ने तीन श्लोकों में चार बार ‘पश्य’ पद से अपना रूप देखने के लिये आज्ञा दी। इसके अनुसार ही अर्जुन आँखें फाड़-फाड़ कर देखते हैं और देखना चाहते भी हैं परन्तु अर्जुन को कुछ भी नहीं दिखता। इसलिये अब भगवान आगे के श्लोक में अर्जुन को न दिखने का कारण बताते हुए उनको दिव्यचक्षु देकर विश्वरूप देखने की आज्ञा देते हैं – स्वामी रामसुखदास जी )