बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।
यदि कोई सही तरीके से बोलना जानता है तो उसे पता है कि वाणी की कीमत पता होती है कि वाणी एक अमूल्य रत्न है। इसलिए वह वाणी को व्यर्थ खर्च नहीं करता और अपने हृदय के तराजू में शब्दों को तोलकर ही उन्हें मुंह से बाहर आने देता है।