सातों सबद जू बाजते घरि घरि होते राग ।
ते मंदिर खाली परे बैसन लागे काग ।
कबीर कहते हैं कि जिन घरों में सप्त स्वर गूंजते थे, पल पल उत्सव मनाए जाते थे, वे घर भी अब खाली पड़े हैं । उन पर अब कौए बैठने लगे हैं। हमेशा एक सा समय तो नहीं रहता । जहां खुशियाँ थी वहां गम छा जाता है । जहां हर्ष था वहां विषाद डेरा डाल सकता है। ऐसा इस संसार में होता है।