Bhagavad Geeta chapter 13

 

 

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Ksetra-KsetrajnayVibhagYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 13 

क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग ~ अध्याय तेरह

अथ त्रयोदशोsध्याय: श्रीभगवानुवाच

 

ज्ञानसहित प्रकृति-पुरुष का विषय

 

 

Bhagawad gita chapter 13यथा प्रकाशयत्येकः कृत्स्नं लोकमिमं रविः।

क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत।।13.34।।

 

 

यथा-जैसे; प्रकाशयति-आलोकित करता है; एकः-एक; कृत्स्नम्-समस्त; लोकम् – ब्रह्माण्ड प्रणालियाँ; इमम्-इस; रविः-सूर्य ; क्षेत्रम्-शरीर; क्षेत्री-आत्मा; तथा – उसी तरह; कृत्स्नम्-समस्त; प्रकाशयति-आलोकित करता है; भारत-भरतपुत्र, अर्जुन।

 

 

हे भारत ! जैसे एक ही सूर्य अपने प्रकाश से इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को प्रकाशित करता है, ऐसे ही एक ही क्षेत्री अर्थात आत्मा अपनी चेतना शक्ति से सम्पूर्ण क्षेत्र अर्थात सम्पूर्ण शरीर को प्रकाशित करता है॥13.34॥

 

यथा प्रकाशयत्येकः कृत्स्नं लोकमिमं रविः – नेत्रों से दिखने वाले इस सम्पूर्ण संसार को संसार के मात्र पदार्थों को एक सूर्य ही प्रकाशित करता है और संसार की सब क्रियाएँ सूर्य के प्रकाश के अन्तर्गत होती हैं परन्तु सूर्य में मैं सबको प्रकाशित करता हूँ । ऐसा कर्तृत्व नहीं होता। जैसे – सूर्य के प्रकाश में ही ब्राह्मण वेद-पाठ करता है और शिकारी पशुओं को मारता है पर सूर्य का प्रकाश वेदपाठ और शिकाररूपी क्रियाओं को करने करवाने में कारण नहीं बनता। यहाँ ‘लोक’ शब्द मात्र संसार (चौदह भुवनों) का वाचक है। कारण कि मात्र संसार में जो कुछ भी (चन्द्रमा , तारे , अग्नि , मणि , जड़ी-बूटी आदि में) प्रकाश है वह सब सूर्य का ही है। ‘क्षेत्रं क्षेत्री’ तथा ‘कृत्स्नं प्रकाशयति भारत’ – सूर्य की तरह एक ही क्षेत्री (क्षेत्रज्ञ आत्मा) सम्पूर्ण क्षेत्रों को प्रकाशित करता है अर्थात् सब क्षेत्रों में करना करवाना रूप सम्पूर्ण क्रियाएँ क्षेत्री के प्रकाश में ही होती हैं परन्तु क्षेत्री उन क्रियाओं को करने करवाने में कारण नहीं बनता। सूर्य तो केवल स्थूल संसार को ही प्रकाशित करता है और उसके प्रकाश में स्थूल संसार की ही क्रियाएँ होती हैं पर क्षेत्री केवल स्थूल क्षेत्र (संसार) को ही प्रकाशित नहीं करता बल्कि वह स्थूल , सूक्ष्म और कारण – तीनों क्षेत्रों को प्रकाशित करता है तथा उसके प्रकाश में स्थूल , सूक्ष्म और कारण – तीनों शरीरों की सम्पूर्ण क्रियाएँ होती हैं। जैसे सम्पूर्ण संसार को प्रकाशित करने पर भी सूर्य में (सबको प्रकाशित करने का) अभिमान नहीं आता और तरह-तरह की क्रियाओं को प्रकाशित करने पर भी सूर्य में नाना भेद नहीं आता । ऐसे ही सम्पूर्ण क्षेत्रों को प्रकाशित करने , उनको सत्तास्फूर्ति देने पर भी क्षेत्री में अभिमान , कर्तृत्व नहीं आता और तरह-तरह की क्रियाओं को प्रकाशित करने पर भी क्षेत्री में नानाभेद नहीं आता। वह क्षेत्री सदा ही ज्यों का त्यों निर्लिप्त , असङ्ग रहता है। कोई भी क्रिया तथा वस्तु बिना आश्रय के नहीं होती और कोई भी प्रतीति बिना प्रकाश (ज्ञान) के नहीं होती। क्षेत्री सम्पूर्ण क्रियाओं , वस्तुओं और प्रतीतियों का आश्रय और प्रकाशक है। अब भगवान क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के विभाग को जानने का फल बताते हुए प्रकरण का उपसंहार करते हैं – स्वामी रामसुखदास जी 

 

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