Bhagavad Gita Chapter 11

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VishwaRoopDarshanYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 11 

विश्वरूपदर्शनयोग ~ अध्याय ग्यारह

अथैकादशोऽध्यायः- विश्वरूपदर्शनयोग

 

 

09 – 14  संजय द्वारा धृतराष्ट्र के प्रति विश्वरूप का वर्णन

 

 

Bhagavad Gita Chapter 11ततः स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनञ्जयः ।

प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत ॥11.14।।

 

ततः-तब; सः-वह; विस्मय आविष्टः-आश्चर्य से भरपूर; हृष्ट रोमा – रोंगटे खड़े होना; धनंजयः-अर्जुन; प्रणम्य-प्रणाम करके; सिरसा–सिर के बल; देवम्-भगवान को; कृताञ्जलिः-हाथ जोड़कर; अभाषत-कहने लगा।

 

तब आश्चर्य में डूबे अर्जुन के शरीर के रोंगटे खड़े हो गए और वह श्रद्धा-भक्ति सहित मस्तक को झुकाए प्रकाशमय विश्वरूप परमात्मा के समक्ष हाथ जोड़कर इस प्रकार प्रार्थना करने लगा॥11.14॥

 

(‘ततः स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनञ्जयः’ – अर्जुन ने भगवान के रूप के विषय में जैसी कल्पना भी नहीं की थी वैसा रूप देखकर उनको बड़ा आश्चर्य हुआ। भगवान ने मेरे पर कृपा करके विलक्षण आध्यात्मिक बातें अपनी ओर से बतायीं और अब कृपा करके मेरे को अपना विलक्षण रूप दिखा रहे हैं – इस बात को लेकर अर्जुन प्रसन्नता के कारण रोमाञ्चित हो उठे। ‘प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत’ – भगवान की विलक्षण कृपा को देखकर अर्जुन का ऐसा भाव उमड़ा कि मैं इसके बदले में क्या कृतज्ञता प्रकट करूँ मेरे पास कोई ऐसी वस्तु नहीं है जो मैं इनके अर्पण करूँ। मैं तो केवल सिर से प्रणाम ही कर सकता हूँ अर्थात् अपने आपको अर्पित ही कर सकता हूँ। अतः अर्जुन हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर प्रणाम करते हुए विश्वरूप भगवान की स्तुति करने लगे। अर्जुन विराट रूप भगवान की जिस विलक्षणता को देखकर चकित हुए उसका वर्णन आगे के तीन श्लोकों में करते हुए भगवान की स्तुति करते हैं – स्वामी रामसुखदास जी )

 

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