Bhagavad Gita Chapter 11

 

 

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VishwaRoopDarshanYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 11 

विश्वरूपदर्शनयोग ~ अध्याय ग्यारह

अथैकादशोऽध्यायः- विश्वरूपदर्शनयोग

 

 

35 – 46  भयभीत हुए अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति और चतुर्भुज रूप का दर्शन कराने के लिए प्रार्थना

 

 

Bhagavad Gita Chapter 11संजय उवाच

एतच्छ्रुत्वा वचनं केशवस्य कृतांजलिर्वेपमानः किरीटी ।

नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णंसगद्गदं भीतभीतः प्रणम्य ॥11.35।।

 

संजयः उवाच-संजय ने कहा; एतत्-इस प्रकार; श्रुत्वा-सुनकर; वचनम्-वाणी; केशवस्य-श्रीकृष्ण की; कृताञ्जलिः-हाथ जोड़कर; वेपमान:-काँपते हुए; किरीटी–अर्जुन ने; नमस्कृत्वा- नमस्कार करके; भूयः-फिर; एव-भी; आह-बोला; कृष्णम्-कृष्ण से; सगद्गदम्-अवरुद्ध स्वर से; भीतभीत:-भयातुर होकर; प्रणम्य-झुक कर।।

 

संजय बोले- भगवान केशव के इन वचनों को सुनकर मुकुटधारी अर्जुन अपने दोनों हाथ जोड़कर काँपते हुए श्री कृष्ण को नमस्कार कर के अत्यन्त भयभीत होकर प्रणाम करके तथा अपना शीश झुका कर भगवान श्रीकृष्ण से अवरुद्ध स्वर में या गद्‍गद्‍ वाणी से फिर भी बोले॥11.35॥

 

 (  ‘एतच्छ्रुत्वा वचनं केशवस्य कृताञ्जलिर्वेपमानः किरीटी ‘ – अर्जुन तो पहले से भयभीत थे ही फिर भगवान ने मैं काल हूँ , सबको खा जाऊँगा – ऐसा कहकर मानो डरे हुए को और डरा दिया। तात्पर्य है कि ‘कालोऽस्मि’ – यहाँ से लेकर ‘मया हतांस्त्वं जहि’ – यहाँ तक भगवान ने नाश ही नाश की बात बतायी। इसे सुनकर अर्जुन डर के मारे काँपने लगे और हाथ जोड़कर बार-बार नमस्कार करने लगे।अर्जुन ने इन्द्र की सहायता के लिये जब काल और खञ्ज आदि राक्षसों को मारा था तब इन्द्र ने प्रसन्न होकर अर्जुन को सूर्य के समान प्रकाशवाला एक दिव्य किरीट (मुकुट) दिया था। इसी से अर्जुन का नाम किरीटी पड़ गया (टिप्पणी प0 598)। यहाँ किरीटी कहने का तात्पर्य है कि जिन्होंने बड़े-बड़े राक्षसों को मारकर इन्द्र की सहायता की थी , वे अर्जुन भी भगवान के विराट रूप को देखकर कम्पित हो रहे हैं। ‘नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णं गद्गद भीतभीतः प्रणम्य ‘ – काल सबका भक्षण करता है , किसी को भी छोड़ता नहीं। कारण कि यह भगवान की संहारशक्ति है जो हरदम संहार करती ही रहती है। इधर अर्जुन ने जब भगवान के अति उग्र विराट रूप को देखा तो उनको लगा कि भगवान काल के भी काल – महाकाल हैं। उनके सिवाय दूसरा कोई भी काल से बचाने वाला नहीं है। इसलिये अर्जुन भयभीत होकर भगवान को बार-बार प्रणाम करते हैं। ‘भूयः’ कहने का तात्पर्य है कि पहले 15वें से 31वें श्लोक तक अर्जुन ने भगवान की स्तुति और नमस्कार किया । अब फिर भगवान की स्तुति और नमस्कार करते हैं। हर्ष से भी वाणी गद्गद होती है और भय से भी। यहाँ भय का विषय है। अगर अर्जुन बहुत ज्यादा भयभीत होते तो वे बोल ही न सकते परन्तु अर्जुन गद्गद वाणी से बोलते हैं। इससे सिद्ध होता है कि वे इतने भयभीत नहीं हैं। अब आगे के श्लोक से अर्जुन भगवान की स्तुति करना आरम्भ करते हैं – स्वामी रामसुखदास जी )

 

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