सांख्ययोग ~ अध्याय दो
01-10 अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद
सञ्जय उवाच।
एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेशः परन्तप।
न योत्स्य इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह ॥2.9॥
सञ्जयः उवाच-संजय ने कहा; एवम्-इस प्रकार; उक्त्वा -कहकर; हृषीकेशम्-कृष्ण से, जो मन और इन्द्रियों के स्वामी हैं; गुडाकेश:-निद्रा को वश में करने वाला, अर्जुन; परन्तपः-शत्रुओं का दमन करने वाला, अर्जुन; न योस्ये-मैं नहीं लडूंगा; इति-इस प्रकार; गोविन्दम्-इन्द्रियों को सुख देने वाले, कृष्ण; उक्तवा-कहकर; तृष्णीम्-चुप; बभूव – हो गया; ह-वह हो गया;।
संजय ने कहा-ऐसा कहने के पश्चात ‘गुडाकेश’ निद्रा को जीतने वाले ,शत्रुओं का दमन करने वाला अर्जुन, ‘हृषीकेश’ कृष्ण से बोला, हे गोविन्द! मैं युद्ध नहीं करूँगा और शांत हो गया।।2.9।।
एवमुक्त्वा हृषीकेषम् ৷৷. बभूव ह – अर्जुन ने अपना और भगवान का दोनों का पक्ष सामने रखकर उन पर विचार किया तो अन्त में वे इसी निर्णय पर पहुँचे कि युद्ध करने से तो अधिक से अधिक राज्य प्राप्त हो जायेगा , मान हो जायेगा , संसार में यश हो जाएगा परन्तु मेरे हृदय में जो शोक है , चिन्ता है , दुःख है वे दूर नहीं होंगे। अतः अर्जुन को युद्ध न करना ही ठीक मालूम दिया। यद्यपि अर्जुन भगवान की बात का आदर करते हैं और उसको मानना भी चाहते हैं परंतु उनके भीतर युद्ध करने की बात ठीक-ठीक जँच नहीं रही है। इसलिये अर्जुन अपने भीतर जँची हुई बात को ही यहाँ स्पष्टरूप से साफ-साफ कह देते हैं कि मैं युद्ध नहीं करूँगा। इस प्रकार जब अपनी बात अपना निर्णय भगवान से साफ-साफ कह दिया तब भगवान से कहने के लिये और कोई बात बाकी नहीं रही । अतः वे चुप हो जाते हैं। जब अर्जुन ने युद्ध करने के लिये साफ मना कर दिया तब उसके बाद क्या हुआ ? इसको सञ्जय आगे के श्लोक में बताते हैं – स्वामी रामसुखदास जी