नैंनो की करि कोठरी, पुतली पलंग बिछाय।
पलकों की चिक डारि कै, पिय को लिया रिझाय।।
अपने सद्गुरू को सम्मानिक करने के लिए नेत्रों की कोठरी बनाकर पुतली रूपी पलंग बिछा दिया और पलकों को चिक डालकर अपने स्वामी को प्रसन्न कर लिया अर्थात् नयनों में प्रभु को बसाकर अपनी भक्ति अर्पित कर दी।