तू कहता कागद की लेखी मैं कहता आँखिन की देखी ।
मैं कहता सुरझावन हारि, तू राख्यौ उरझाई रे ।
तुम कागज़ पर लिखी बात को सत्य कहते हो । तुम्हारे लिए वह सत्य है जो कागज़ पर लिखा है। किन्तु मैं आंखों देखा सच ही कहता और लिखता हूँ। मैं सरलता से हर बात को सुलझाना चाहता हूँ । तुम उसे उलझा कर क्यों रख देते हो? जितने सरल बनोगे, उलझन से उतने ही दूर रहोगे। ( कबीर पढे-लिखे नहीं थे पर उनकी बातों में सचाई थी।)