प्रेम पियाला जो पिए, सिस दक्षिणा देय ।
लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय ।
जिसको ईश्वर की भक्ति का प्रेम पाना है और उसका आनंद उठाना है , उसे अपना काम, क्रोध, भय, इच्छा यहाँ तक कि अपना शीश भी त्यागना होगा । लालची व्यक्ति अपना काम, क्रोध, भय, इच्छा तो त्याग नहीं सकता लेकिन सदैव प्रेम पाने की उम्मीद रखता है।