पढ़े गुनै सीखै सुनै मिटी न संसै सूल।
कहै कबीर कासों कहूं ये ही दुःख का मूल ।
बहुत सी पुस्तकों को पढ़ा, गुना , सुना, सीखा पर फिर भी मन में गड़ा संशय का काँटा न निकला । कबीर कहते हैं कि किसे समझा कर यह कहूं कि यही तो सब दुखों की जड़ है । ऐसे पठन मनन से क्या लाभ जो मन का संशय न मिटा सके?