रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ।
कबीर दास जी कहते हैं कि रात को सोते हुए गँवा दिया और दिन खाते खाते गँवा दिया। आपको जो ये हीरे के समान बहुमूल्य और अनमोल जीवन मिला है वो कौड़ियों के बदले जा रहा है। अर्थात रात नींद में नष्ट कर दी बस सोते रहे और दिन में भोजन से फुर्सत नहीं मिली । यह मनुष्य जन्म हीरे के समान बहुमूल्य था जिसे तुमने व्यर्थ कर दिया। कुछ सार्थक किया नहीं तो जीवन का क्या मूल्य बचा ? एक कौड़ी । अर्थात हीरे के समान कीमती जीवन को संसार के निर्मूल्य विषयों की अर्थात कामनाओं और वासनाओं की भेंट चढ़ा दिया – इससे दुखद क्या हो सकता है ?