तेरा संगी कोई नहीं सब स्वारथ बंधी लोइ ।
मन परतीति न उपजै, जीव बेसास न होइ ।
तेरा साथी कोई भी नहीं है। सब मनुष्य स्वार्थ में बंधे हुए हैं, जब तक इस बात का भरोसा मन में उत्पन्न नहीं होता तब तक आत्मा के प्रति विशवास जाग्रत नहीं होता। अर्थात वास्तविकता का ज्ञान न होने से मनुष्य संसार में रमा रहता है । जब संसार के सच को जान लेता है तब इस स्वार्थमय सृष्टि को समझ लेता है और तब ही अंतरात्मा की ओर उन्मुख होता है अर्थात भीतर झांकता है ।