नैना अंतर आव तू, ज्यूं हौं नैन झंपेउ।
ना हौं देखूं और को न तुझ देखन देऊँ।
हे प्रिय प्रभु ! तुम इन दो नेत्रों की राह से मेरे भीतर आ जाओ और फिर मैं अपने इन नेत्रों को बंद कर लूं । फिर न तो मैं किसी दूसरे को देखूं और न ही किसी और को तुम्हें देखने दूं।
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