Lanka Kand Ramayan

 

 

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माल्यवान का रावण को समझाना

 

दोहा :

कछु मारे कछु घायल कछु गढ़ चढ़े पराइ।
गर्जहिं भालु बलीमुख रिपु दल बल बिचलाइ॥47॥

 

कुछ मारे गए, कुछ घायल हुए, कुछ भागकर गढ़ पर चढ़ गए। अपने बल से शत्रुदल को विचलित करके रीछ और वानर (वीर) गरज रहे हैं॥47॥

 

चौपाई :

निसा जानि कपि चारिउ अनी।

आए जहाँ कोसला धनी॥

राम कृपा करि चितवा सबही।

भए बिगतश्रम बानर तबही॥1॥

 

रात हुई जानकर वानरों की चारों सेनाएँ (टुकड़ियाँ) वहाँ आईं, जहाँ कोसलपति श्री रामजी थे। श्री रामजी ने ज्यों ही सबको कृपा करके देखा त्यों ही ये वानर श्रमरहित हो गए॥1॥

 

उहाँ दसानन सचिव हँकारे।

सब सन कहेसि सुभट जे मारे॥

आधा कटकु कपिन्ह संघारा।

कहहु बेगि का करिअ बिचारा॥2॥

 

वहाँ (लंका में) रावण ने मंत्रियों को बुलाया और जो योद्धा मारे गए थे, उन सबको सबसे बताया। (उसने कहा-) वानरों ने आधी सेना का संहार कर दिया! अब शीघ्र बताओ, क्या विचार (उपाय) करना चाहिए?॥2॥

 

माल्यवंत अति जरठ निसाचर।

रावन मातु पिता मंत्री बर॥

बोला बचन नीति अति पावन।

सुनहु तात कछु मोर सिखावन॥3॥

 

माल्यवंत (नाम का एक) अत्यंत बूढ़ा राक्षस था। वह रावण की माता का पिता (अर्थात्‌ उसका नाना) और श्रेष्ठ मंत्री था। वह अत्यंत पवित्र नीति के वचन बोला- हे तात! कुछ मेरी सीख भी सुनो-॥3॥

 

जब ते तुम्ह सीता हरि आनी।

असगुन होहिं न जाहिं बखानी॥

बेद पुरान जासु जसु गायो।

राम बिमुख काहुँ न सुख पायो॥4॥

 

जब से तुम सीता को हर लाए हो, तब से इतने अपशकुन हो रहे हैं कि जो वर्णन नहीं किए जा सकते। वेद-पुराणों ने जिनका यश गाया है, उन श्री राम से विमुख होकर किसी ने सुख नहीं पाया॥4॥

 

दोहा :

हिरन्याच्छ भ्राता सहित मधु कैटभ बलवान।
जेहिं मारे सोइ अवतरेउ कृपासिंधु भगवान॥48 क॥

 

भाई हिरण्यकशिपु सहित हिरण्याक्ष को बलवान्‌ मधु-कैटभ को जिन्होंने मारा था, वे ही कृपा के समुद्र भगवान्‌ (रामरूप से) अवतरित हुए हैं॥ 48 (क)॥

 

मासपारायण, पचीसवाँ विश्राम

 

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