Lanka Kand Ramayan

 

 

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लक्ष्मणरावण युद्ध

 

 

दोहा :

 

निज दल बिकल देखि कटि कसि निषंग धनु हाथ।
लछिमन चले क्रुद्ध होइ नाइ राम पद माथ॥82॥

 

अपनी सेना को व्याकुल देखकर कमर में तरकस कसकर और हाथ में धनुष लेकर श्री रघुनाथजी के चरणों पर मस्तक नवाकर लक्ष्मणजी क्रोधित होकर चले॥82॥

 

चौपाई :

 

रे खल का मारसि कपि भालू।

मोहि बिलोकु तोर मैं कालू॥

खोजत रहेउँ तोहि सुतघाती।

आजु निपाति जुड़ावउँ छाती॥1॥

 

(लक्ष्मणजी ने पास जाकर कहा-) अरे दुष्ट! वानर भालुओं को क्या मार रहा है? मुझे देख, मैं तेरा काल हूँ। (रावण ने कहा-) अरे मेरे पुत्र के घातक! मैं तुझी को ढूँढ रहा था। आज तुझे मारकर (अपनी) छाती ठंडी करूँगा॥1॥

 

अस कहि छाड़ेसि बान प्रचंडा।

लछिमन किए सकल सत खंडा॥

कोटिन्ह आयुध रावन डारे।

तिल प्रवान करि काटि निवारे॥2॥

 

ऐसा कहकर उसने प्रचण्ड बाण छोड़े। लक्ष्मणजी ने सबके सैकड़ों टुकड़े कर डाले। रावण ने करोड़ों अस्त्र-शस्त्र चलाए। लक्ष्मणजी ने उनको तिल के बराबर करके काटकर हटा दिया॥2॥

 

पुनि निज बानन्ह कीन्ह प्रहारा।

स्यंदनु भंजि सारथी मारा॥

सत सत सर मारे दस भाला।

गिरि सृंगन्ह जनु प्रबिसहिं ब्याला॥3॥

 

फिर अपने बाणों से (उस पर) प्रहार किया और (उसके) रथ को तोड़कर सारथी को मार डाला। (रावण के) दसों मस्तकों में सौ-सौ बाण मारे। वे सिरों में ऐसे पैठ गए मानो पहाड़ के शिखरों में सर्प प्रवेश कर रहे हों॥3॥

 

पुनि सुत सर मारा उर माहीं।

परेउ धरनि तल सुधि कछु नाहीं॥

उठा प्रबल पुनि मुरुछा जागी।

छाड़िसि ब्रह्म दीन्हि जो साँगी॥4॥

 

फिर सौ बाण उसकी छाती में मारे। वह पृथ्वी पर गिर पड़ा, उसे कुछ भी होश न रहा। फिर मूर्च्छा छूटने पर वह प्रबल रावण उठा

और उसने वह शक्ति चलाई जो ब्रह्माजी ने उसे दी थी॥4॥

 

छंद :

 

सो ब्रह्म दत्त प्रचंड सक्ति अनंत उर लागी सही।

पर्‌यो बीर बिकल उठाव दसमुख अतुल बल महिमा रही॥

ब्रह्मांड भवन बिराज जाकें एक सिर जिमि रज कनी।

तेहि चह उठावन मूढ़ रावन जान नहिं त्रिभुअन धनी॥

 

वह ब्रह्मा की दी हुई प्रचण्ड शक्ति लक्ष्मणजी की ठीक छाती में लगी। वीर लक्ष्मणजी व्याकुल होकर गिर पड़े। तब रावण उन्हें उठाने लगा, पर उसके अतुलित बल की महिमा यों ही रह गई, (व्यर्थ हो गई, वह उन्हें उठा न सका)। जिनके एक ही सिर पर ब्रह्मांड रूपी भवन धूल के एक कण के समान विराजता है, उन्हें मूर्ख रावण उठाना चाहता है! वह तीनों भुवनों के स्वामी लक्ष्मणजी को नहीं जानता।

 

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