अध्याय-एक : अर्जुन विषाद योग
01-11 दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों और अन्य महान वीरों का वर्णन
अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः।
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि ॥1.11॥
अयनेषु–निश्चित स्थान पर; च-भी; सर्वेषु- सर्वत्र; यथा-भागम्-अपने अपने निश्चित स्थान पर; अवस्थिता:-स्थित; भीष्मम्-भीष्म पितामह की; एव-निश्चय ही; अभिरक्षन्तु–सुरक्षा करना; भवन्त:-आप; सर्वे- सब ; एव हि-जब भी।
इसलिए सब मोर्चों पर अपनी-अपनी जगह स्थित रहते हुए आप लोग सभी निःसंदेह भीष्म पितामह की ही सब ओर से रक्षा करें॥1.11॥
‘अयनेषु च सर्वेषु ৷৷. भवन्तः सर्व एव हि ‘ – जिन-जिन मोर्चों पर आपकी नियुक्ति कर दी गयी है आप सभी योद्धालोग उन्हीं मोर्चों पर दृढ़ता से स्थित रहते हुए सब तरफ से सब प्रकार से भीष्मजी की रक्षा करें। भीष्मजी की सब ओर से रक्षा करें । यह कहकर दुर्योधन भीष्मजी को भीतर से अपने पक्ष में लाना चाहता है। ऐसा कहने का दूसरा भाव यह है कि जब भीष्मजी युद्ध करें तब किसी भी व्यूहद्वार से शिखण्डी उनके सामने न आ जाय इसका आप लोग खयाल रखें। अगर शिखण्डी उनके सामने आ जायगा तो भीष्मजी उस पर शस्त्रास्त्र नहीं चलायेंगे। कारण कि शिखण्डी पहले जन्म में भी स्त्री था और इस जन्म में भी पहले स्त्री था पीछे पुरुष बना है। इसलिये भीष्मजी इसको स्त्री ही समझते हैं और उन्होंने शिखण्डी से युद्ध न करने की प्रतिज्ञा कर रखी है। यह शिखण्डी शङ्कर के वरदान से भीष्मजी को मारने के लिये ही पैदा हुआ है। अतः जब शिखण्डीसे भीष्मजीकी रक्षा हो जायगी तो फिर वे सबको मार देंगे जिससे निश्चित ही हमारी विजय होगी। इस बातको लेकर दुर्योधन सभी महारथियोंसे भीष्मजीकी रक्षा करनेके लिये कह रहा है। सम्बन्ध द्रोणाचार्यके द्वारा कुछ भी न बोलनेके कारण दुर्योधनका मानसिक उत्साह भङ्ग हुआ देखकर उसके प्रति भीष्मजीके किये हुए स्नेहसौहार्दकी बात सञ्जय आगेके श्लोकमें प्रकट करते हैं – स्वामी रामसुखदास जी