भगवद गीता अध्याय 1 " अर्जुन विषाद योग "

 

 

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अध्याय-एक : अर्जुन विषाद योग 

28-47 अर्जुनका विषाद,भगवान के नामों की व्याख्या

 

 

Arjun Vishad Yog

सञ्जय उवाच।

एवमुक्त्वार्जुनः सङ्खये रथोपस्थ उपाविशत्।

विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः॥1.47॥

 

संजयः उवाच-संजय ने कहा; एवम् उक्त्वा -इस प्रकार कहकर; अर्जुन:-अर्जुन; संङ्ख ये – युद्धभूमि में; रथ उपस्थे – रथ पर; उपाविशत्-बैठ गया; विसृज्य-एक ओर रखकर; स-शरम्-बाणों सहित; चापम्-धनुष; शोक-दुख से; संविग्र–व्यथित; मानसः-मन।

 

संजय ने कहा-इस प्रकार यह कह कर अर्जुन ने अपना धनुष और बाणों को एक ओर रख दिया और शोकाकुल चित्त से अपने रथ के आसन पर बैठ गया, उसका मन व्यथा और दुख से भर गया।।1.47।।

 

 एवमुक्त्वार्जुनः ৷৷. शोकसंविग्नमानसः – युद्ध करना सम्पूर्ण अनर्थों का मूल है । युद्ध करने से यहाँ कुटुम्बियों का नाश होगा , परलोक में नरकों की प्राप्ति होगी आदि बातों को युक्ति और प्रमाण से कहकर शोक से अत्यन्त व्याकुल मन वाले अर्जुन ने युद्ध न करने का पक्का निर्णय कर लिया। जिस रणभूमि में वे हाथ में धनुष लेकर उत्साह के साथ आये थे उसी रणभूमि में उन्होंने अपने बायें हाथ से गाण्डीव धनुष को और दायें हाथ से बाण को नीचे रख दिया और स्वयं रथ के मध्य भाग में अर्थात् दोनों सेनाओं को देखने के लिये जहाँ पर खड़े थे वहीं पर शोकमुद्रा में बैठ गये। अर्जुन की ऐसी शोकाकुल अवस्था होने में मुख्य कारण है भगवान का भीष्म और द्रोण के सामने रथ खड़ा करके अर्जुन से कुरुवंशियों को देखने के लिये कहना और उनको देखकर अर्जुन के भीतर छिपे हुए मोह का जाग्रत् होना। मोह के जाग्रत होने पर अर्जुन कहते हैं कि युद्ध में हमारे कुटुम्बी मारे जायँगे। कुटुम्बियों का मरना ही बड़े नुकसान की बात है। दुर्योधन आदि तो लोभ के कारण इस नुकसान की तरफ नहीं देख रहे हैं परन्तु युद्ध से कितनी अनर्थ परम्परा चल पड़ेगी , इस तरफ ध्यान देकर हम लोगों को ऐसे पाप से निवृत्त हो ही जाना चाहिये। हम लोग राज्य और सुख के लोभ से कुल का संहार करने के लिये रणभूमि में खड़े हो गये हैं । यह हमने बड़ी भारी गलती की ।अतः युद्ध न करते हुए शस्त्ररहित मेरे को यदि सामने खड़े हुए योद्धालोग मार भी दें तो उससे मेरा हित ही होगा। इस तरह अन्तःकरण में मोह छा जाने के कारण अर्जुन युद्ध से उपरत होने में एवं अपने मर जानने में भी हित देखते हैं और अन्त में उसी मोह के कारण बाणसहित धनुष का त्याग करके विषादमग्न होकर बैठ जाते हैं। यह मोह की ही महिमा है कि जो अर्जुन धनुष उठाकर युद्ध के लिये तैयार हो रहे थे वही अर्जुन धनुष को नीचे रखकर शोक से अत्यन्त व्याकुल हो रहे हैं।

 

 इस प्रकार ॐ तत् सत् इन भगवन्नामों के उच्चारणपूर्वक ब्रह्मविद्या और योगशास्त्रमय श्रीमद्भगवद्गीतोपनिषद्रूप श्रीकृष्णार्जुनसंवादमें अर्जुनविषादयोग नामक पहला अध्याय पूर्ण हुआ।।1।।

 

श्रीकृष्णार्जुनसंवादेऽर्जुनविषादयोगो नाम प्रथमोऽध्यायः। ॥1॥

 

 

 

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