भगवद गीता अध्याय 1 " अर्जुन विषाद योग "

 

 

Previous       Menu      Next

 

अध्याय-एक : अर्जुन विषाद योग 

20-27 अर्जुन का सैन्य परिक्षण, गाण्डीव की विशेषता

 

 

Bhagavad Gita Chapter 1

तत्रापश्यत्स्थितान् पार्थः पितृनथ पितामहान्।

आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा ॥1.26॥

श्वशुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि

तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान् ॥1.27॥

 

तत्र-वहाँ; अपश्यत्-देखा; स्थितान्-खड़े पार्थः-अर्जुन ने; पितॄन्-पिता; अथ-तत्पश्चात; पितामहान–पितामहों को; आचार्यान्–शिक्षकों को; मातुलान्-मामाओं को; भ्रातृन्–भाइयों को; पुत्रान्–पुत्रों को; सखीन्-मित्रों को; तथा-और; श्वशुरान्–श्वसुरों को; सुहृदः-शुभचिन्तकों को; च-भी; एव-निश्चय ही; सेनयोः-सेना के; उभयोः-दोनो पक्षों की सेनाएं; अपि:- भी; तान्-उन्हीं; समीक्ष्य-देखकर; सः-वे; कौन्तेयः-कुन्तीपुत्र, अर्जुन; सर्वान्–सभी प्रकार के; बंधु-बान्धव-सगे सम्बन्धियों को; अवस्थितान्–उपस्थित;

 

अर्जुन ने वहाँ खड़ी दोनों पक्षों की सेनाओं के बीच अपने पिता तुल्य चाचाओं-ताऊओं, पितामहों, गुरुओं, मामाओं, भाइयों, चचेरे भाइयों, पुत्रों, भतीजों, मित्रों, ससुर, और शुभचिन्तकों को भी देखा। उन उपस्थित सम्पूर्ण बंधुओं को देखकर वे कुंतीपुत्र अर्जुन। ।1.26-1.27।।

 

1.26       तत्रापश्यत् ৷৷. सेनयोरूभयोरपि – जब भगवान ने अर्जुन से कहा कि इस रणभूमि में इकट्ठे हुए कुरुवंशियों को देख तब अर्जुन की दृष्टि दोनों सेनाओं में स्थित अपने कुटुम्बियों पर गयी। उन्होंने देखा कि उन सेनाओं में युद्ध के लिये अपने-अपने स्थान पर भूरिश्रवा आदि पिता के भाई खड़े हैं जो कि मेरे लिये पिता के समान हैं। भीष्म , सोमदत्त आदि पितामह खड़े हैं। द्रोण , कृप आदि आचार्य (विद्या पढ़ाने वाले और कुलगुरु) खड़े हैं। पुरुजित , कुन्तिभोज , शल्य , शकुनि आदि मामा खड़े हैं। भीम , दुर्योधन आदि भाई खड़े हैं। अभिमन्यु , घटोत्कच , लक्ष्मण (दुर्योधन का पुत्र ) आदि मेरे और मेरे भाइयों के पुत्र खड़े हैं। लक्ष्मण आदि के पुत्र खड़े हैं जो कि मेरे पौत्र हैं। दुर्योंधन के अश्वत्थामा आदि मित्र खड़े हैं और ऐसे ही अपने पक्ष के मित्र भी खड़े हैं। द्रुपद , शैब्य आदि ससुर खड़े हैं। बिना किसी हेतु के अपने-अपने पक्ष का हित चाहने वाले सात्यकि , कृतवर्मा आदि सुहृद् भी खड़े हैं। अपने सब कुटुम्बियों को देखने के बाद अर्जुन ने क्या किया ? इसके आगे के श्लोक में कहते हैं – स्वामी रामसुखदास जी 

1.27     ‘तान् सर्वान्बन्धूनवस्थितान् समीक्ष्य’ पूर्वश्लोक के अनुसार अर्जुन जिनको देख चुके हैं उनके अतिरिक्त अर्जुन ने बाह्लीक आदि प्रपितामह , धृष्टद्युम्न , शिखण्डी , सुरथ आदि साले , जयद्रथ आदि बहनोई तथा अन्य कई सम्बन्धियों को दोनों सेनाओं में स्थित देखा। ‘स कौन्तेयः कृपया परयाविष्टः’ इन पदों में ‘स कौन्तेयः’ कहने का तात्पर्य है कि माता कुन्ती ने जिनको युद्ध करने के लिये सन्देश भेजा था और जिन्होंने शूरवीरता में आकर मेरे साथ दो हाथ करने वाले कौन हैं ? ऐसे मुख्य-मुख्य योद्धाओं को देखने के लिये भगवान श्रीकृष्ण को दोनों सेनाओं के बीच में रथ खड़ा करने की आज्ञा दी थी । वे ही कुन्तीनन्दन अर्जुन अत्यन्त कायरता से युक्त हो जाते हैं । दोनों ही सेनाओं में जन्म के और विद्या के सम्बन्धी ही सम्बन्धी देखने से अर्जुन के मन में यह विचार आया कि युद्ध में चाहे इस पक्ष के लोग मरें चाहे उस पक्ष के लोग मरें नुकसान हमारा ही होगा , कुल तो हमारा ही नष्ट होगा , सम्बन्धी तो हमारे ही मारे जायँगे – ऐसा विचार आने से अर्जुन की युद्ध की इच्छा तो मिट गयी और भीतर में कायरता आ गयी। इस कायरता को भगवान ने आगे (2। 23 में) ‘कश्मलम् ‘ तथा  ‘हृदयदौर्बल्यम् ‘ कहा है और अर्जुन ने (2। 7 में)  ‘कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः’ कहकर इसको स्वीकार भी किया है। अर्जुन कायरता से आविष्ट हुए हैं । 

 

Next Page

 

 

By spiritual talks

Welcome to the spiritual platform to find your true self, to recognize your soul purpose, to discover your life path, to acquire your inner wisdom, to obtain your mental tranquility.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!