अध्याय-एक : अर्जुन विषाद योग
12-19 दोनों सेनाओं की शंख-ध्वनि का वर्णन
ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः।
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् ॥1.13॥
ततः-तत्पश्चात; शङ्खा:-शंख, च-और; भेर्य:-नगाड़े ; च-तथा; पणव आनक-ढोल तथा मृदंग; गोमुखाः-तुरही; सहसा-अचानक; एव-वास्तव में; अभ्यहन्यन्त-एक साथ बजाये गये; सः-वह; शब्दः-स्वर; तुमुल:-कोलाहलपूर्ण; अभवत्-हो गया था।
इसके पश्चात शंख, नगाड़े, बिगुल, तुरही तथा सींग अचानक एक साथ बजने लगे। उनका समवेत स्वर अत्यन्त भयंकर था।। 1.13 ।।
‘ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः ‘ – यद्यपि भीष्मजी ने युद्धारम्भ की घोषणा करने के लिये शंख नहीं बजाया था बल्कि दुर्योधन को प्रसन्न करने के लिये ही शंख बजाया था तथापि कौरव सेना ने भीष्मजी के शंखवादन को युद्ध की घोषणा ही समझा। अतः भीष्मजी के शंख बजाने पर कौरवसेना के शंख आदि सब बाजे एक साथ बज उठे। शंख समुद्र से उत्पन्न होते हैं। ये ठाकुरजी की सेवा-पूजा में रखे जाते हैं और आरती उतारने आदि के काम में आते हैं। माङ्गलिक कार्यों में तथा युद्ध के आरम्भ में ये मुख से फूँक देकर बजाये जाते हैं। भेरी नाम नगाड़ों का है (जो बड़े नगाड़े होते हैं उनको नौबत कहते हैं)। ये नगाड़े लोहे के बने हुए और भैंसे के चमड़े से मढ़े हुए होते हैं तथा लकड़ी के डंडे से बजाये जाते हैं। ये मन्दिरों में एवं राजाओं के किलों में रखे जाते हैं। उत्सव और माङ्गलिक कार्यों में ये विशेषता से बजाये जाते हैं। राजाओं के यहाँ ये रोज बजाये जाते हैं। ‘पणव’ नाम ढोल का है। ये लोहे के अथवा लकड़ी के बने हुए और बकरे के चमड़े से मढ़े हुए होते हैं तथा हाथ से या लकड़ी के डंडे से बजाये जाते हैं। ये आकार में ढोलकी की तरह होने पर भी ढोलकी से बड़े होते हैं। कार्य के आरम्भ में पणवों को बजाना गणेशजी के पूजन के समान माङ्गलिक माना जाता है। ‘आनक’ नाम मृदङ्ग का है। इनको ‘पखावज’ भी कहते हैं। आकार में ये लकड़ी की बनायी हुई ढोलकी के समान होते हैं। ये मिट्टी के बने हुए और चमड़े से मढ़े हुए होते हैं तथा हाथ से बजाये जाते हैं। ‘गोमुख’ नाम नरसिंघे का है। ये आकार में साँप की तरह टेढ़े होते हैं और इनका मुख गाय की तरह होता है। ये मुख की फूँक से बजाये जाते हैं। ‘सहसैवाभ्यहन्यन्त’ – (टिप्पणी प0 12) कौरवसेना में उत्साह बहुत था। इसलिये पितामह भीष्म का शंख बजते ही कौरव सेना के सब बाजे अनायास ही एक साथ बज उठे। उनके बजने में देरी नहीं हुई तथा उनको बजाने में परिश्रम भी नहीं हुआ। ‘स शब्दस्तुमुलोऽभवत्’ – अलग-अलग विभागों में टुकड़ियों में खड़ी हुई कौरव सेना के शंख आदि बाजों का शब्द बड़ा भयंकर हुआ अर्थात् उनकी आवाज बड़ी जोर से गूँजती रही। इस अध्याय के आरम्भ में ही धृतराष्ट्र ने सञ्जय से पूछा था कि युद्धक्षेत्र में मेरे और पाण्डुके पुत्रों ने क्या किया ? अतः सञ्जय ने दूसरे श्लोक से तेरहवें श्लोक तक धृतराष्ट्र के पुत्रों ने क्या किया ? इसका उत्तर दिया। अब आगे के श्लोक से सञ्जय पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया ? इसका उत्तर देते हैं – स्वामी रामसुखदास जी