भगवद गीता अध्याय 1 " अर्जुन विषाद योग "

 

 

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अध्याय-एक : अर्जुन विषाद योग 

01-11 दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों और अन्य महान वीरों का वर्णन

 

 

भगवद गीता अध्याय 1 " अर्जुन विषाद योग "

अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि ।

युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः॥1.4॥

धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान् ।

पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङ्गवः॥1.5॥

युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान् ।

सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः॥1.6॥

 

अत्र – यहाँ; शूराः-शक्तिशाली योद्धा; महा इषु आसा:-महान धनुर्धर; भीम अर्जुन समा:-अर्जुन और भीम के समान; युधि-;युद्धकला के पराक्रमी योद्धा; युयुधान:-युयुधान; विराट:-विराटः च-भी; द्रुपदः-द्रुपद; च-भी; महारथ:-महान योद्धा, जो अकेले दस हजार साधारण सैनिकों का सामना करने की सामर्थ्य रखता हो; धृष्टकेतुः-धृष्टकेतु; चेकितानः-चेकितान; काशिराज:-काशिराज; च-और; वीर्यवान्-महानयोद्धा; पुरुजित्-पुरुजित् ;कुन्तिभोज-कुन्तिभोज; च-तथा; शैब्य:-शैव्य; च-और; नरपुङ्गवः-उत्तम पुरूष; युधामन्युः-युधामन्यु; च -और; विक्रान्त:-निडर; उत्तमौजा:-उत्तमौजा; च-और; वीर्यवान्-महाशक्तिशाली; सौभद्र-सुभद्रा का पुत्र; द्रौपदेया:-द्रोपदी के पुत्र; च -और; सर्वे-सभी; एक्-निश्चय ही; महारथाः-महारथी, जो युद्ध में अकेले ही दस हजार साधारण योद्धाओं का सामना कर सके।

 

यहाँ इस सेना में भीम और अर्जुन के समान बलशाली युद्ध करने वाले महारथी युयुधान, विराट और द्रुपद जैसे अनेक शूरवीर धनुर्धर हैं। यहाँ पर इनके साथ धृष्टकेतु, चेकितान काशी के पराक्रमी राजा कांशिराज, पुरूजित, कुन्तीभोज और शैव्य सभी महान सेना नायक हैं। इनकी सेना में पराक्रमी युधमन्यु, शूरवीर, उत्तमौजा, सुभद्रा और द्रोपदी के पुत्र भी हैं जो सभी निश्चय ही महाशक्तिशाली योद्धा हैं जो युद्ध में अकेले ही दस हजार साधारण योद्धाओं का सामना कर सके।। 1.4-1.6।।

1.4      ‘अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि ‘ जिनसे बाण चलाये जाते हैं फेंके जाते हैं उनका नाम ‘इष्वास’ अर्थात् धनुष है। ऐसे बड़े-बड़े इष्वास (धनुष ) जिनसे पास हैं , वे सभी महेष्वास हैं। तात्पर्य है कि बड़े धनुषों पर बाण चढ़ाने एवं प्रत्यञ्चा खींचने में बहुत बल लगता है। जोर से खींचकर छोड़ा गया बाण विशेष मार करता है। ऐसे बड़े-बड़े धनुष पास में होने के कारण ये सभी बहुत बलवान और शूरवीर हैं। ये मामूली योद्धा नहीं हैं। युद्ध में ये भीम और अर्जुन के समान हैं अर्थात् बल में ये भीम के समान और अस्त्र-शस्त्र की कला में ये अर्जुन के समान हैं। ‘युयुधानः’ युयुधान (सात्यकि) ने अर्जुन से अस्त्र-शस्त्र की विद्या सीखी थी। इसलिये भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा दुर्योधन को नारायणी सेना देने पर भी वह कृतज्ञ होकर अर्जुन के पक्ष में ही रहा । दुर्योधन के पक्षमें नही गया। द्रोणाचार्य के मन में अर्जुन के प्रति द्वेष-भाव पैदा करने के लिये दुर्योधन महारथियों में सबसे पहले अर्जुन के शिष्य युयुधान का नाम लेता हैं। तात्पर्य है कि इस अर्जुन को तो देखिये । इसने आपसे ही अस्त्र-शस्त्र चलाना सीखा है और आपने अर्जुन को यह वरदान भी दिया है कि संसार में तुम्हारे समान और कोई धनुर्धर न हो , ऐसा प्रयत्न करूँगा  (टिप्पणी प0 6) । इस तरह आपने तो अपने शिष्य अर्जुन पर इतना स्नेह रखा है पर वह कृतघ्न होकर आपके विपक्ष में लड़ने के लिये खड़ा है जबकि अर्जुन का शिष्य उसी के पक्ष में खड़ा है। युयुधान महाभारत के युद्ध में न मरकर यादवों के आपसी युद्ध में मारे गये। ‘विराटश्च’ जिसके कारण हमारे पक्ष का वीर सुशर्मा अपमानित किया गया ,आपको सम्मोहन अस्त्र से मोहित होना पड़ा और हम लोगों को भी जिसकी गायें छोड़कर युद्ध से भागना पड़ा , वह राजा विराट आपके प्रतिपक्ष में खड़ा है। राजा विराट के साथ द्रोणाचार्य का ऐसा कोई वैरभाव या द्वेषभाव नहीं था परन्तु दुर्योधन यह समझता है कि अगर युयुधान के बाद मैं द्रुपद का नाम लूँ तो द्रोणाचार्य के मन में यह भाव आ सकता है कि दुर्योधन पाण्डवों के विरोध में मेरे को उकसाकर युद्ध के लिए विशेषता से प्रेरणा कर रहा है तथा मेरे मन में पाण्डवों के प्रति वैरभाव पैदा कर रहा है। इसलिये दुर्योधन द्रुपद के नाम से पहले विराट का नाम लेता है जिससे द्रोणाचार्य मेरी चालाकी न समझ सकें और विशेषता से युद्ध करें। राजा विराट उत्तर , श्वेत और शंख नामक तीनों पुत्रों सहित महाभारत युद्ध में मारे गये। ‘द्रुपदश्च महारथः’ आपने तो द्रुपद को पहले की मित्रता याद दिलायी पर उसने सभा में यह कहकर आपका अपमान किया कि मैं राजा हूँ और तुम भिक्षुक हो । अतः मेरी तुम्हारी मित्रता कैसी ? तथा वैरभाव के कारण आपको मारने के लिये पुत्र भी पैदा किया । वही महारथी द्रुपद आपसे लड़ने के लिये विपक्ष में खड़ा है। राजा द्रुपद युद्ध में द्रोणाचार्य के हाथ से मारे गये। ‘धृष्टकेतुः’   यह धृष्टकेतु कितना मूर्ख है कि जिसके पिता शिशुपाल को कृष्ण ने भरी सभा में चक्र से मार डाला था उसी कृष्ण के पक्ष में यह लड़ने के लिये खड़ा है। धृष्टकेतु द्रोणाचार्य के हाथ से मारे गये। ‘चेकितानः’ सब यादवसेना तो हमारी ओर से लड़ने के लिये तैयार है और यह यादव चेकितान पाण्डवों की सेना में खड़ा है। चेकितान दुर्योधन के हाथ से मारे गये। ‘काशिराजश्च वीर्यवान्’ यह काशिराज बड़ा ही शूरवीर और महारथी है। यह भी पाण्डवों की सेना में खड़ा है। इसलिये आप सावधानी से युद्ध करना क्योंकि यह बड़ा पराक्रमी है। काशिराज महाभारत युद्ध में मारे गये। ‘पुरुजित्कुन्तिभोजश्च’ यद्यपि पुरुजित् और कुन्तिभोज ये दोनों कुन्ती के भाई होने से हमारे और पाण्डवों के मामा हैं तथापि इनके मन में पक्षपात होने के कारण , ये हमारे विपक्ष में युद्ध करने के लिये खड़े हैं। ‘पुरुजित्’ और ‘कुन्तिभोज’ दोनों ही युद्ध में द्रोणाचार्य के हाथ से मारे गये। ‘शैब्यश्च नरपुङ्गवः’ यह शैब्य युधिष्ठिर का श्वशुर है। यह मनुष्यों में श्रेष्ठ और बहुत बलवान है। परिवार के नाते यह भी हमारा सम्बन्धी है परन्तु यह पाण्डवों के ही पक्ष में खड़ा है। ‘युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्’ पाञ्चाल देश के बड़े बलवान और वीर योद्धा युधामन्यु तथा उत्तमौजा मेरे वैरी अर्जुन के रथ के पहियों की रक्षा में नियुक्त किये गये हैं। आप इनकी ओर भी नजर रखना। रात में सोते हुए इन दोनों को अश्वत्थामा ने मार डाला। ‘सौभद्रः’ यह कृष्ण की बहन सुभद्रा का पुत्र अभिमन्यु है। यह बहुत शूरवीर है। इसने गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदन की विद्या सीखी है। अतः चक्रव्यूह रचना के समय आप इसका खयाल रखें। युद्ध में दुःशासन पुत्र के द्वारा अन्याय-पूर्वक सिर पर गदा का प्रहार करने से अभिमन्यु मारे गये। ‘द्रौपदेयाश्च’ युधिष्ठिर , भीम , अर्जुन , नकुल और सहदेव इन पाँचों के द्वारा द्रौपदी के गर्भ से क्रमशः प्रतिविन्ध्य , सुतसोम , श्रुतकर्मा , शतानीक और श्रुतसेन पैदा हुए हैं। इन पाँचों को आप देख लीजिये। द्रौपदी ने भरी सभा में मेरी हँसी उड़ाकर मेरे हृदय को जलाया है । उसी के इन पाँचों पुत्रों को युद्ध में मारकर आप उसका बदला चुकायें। रात में सोते हुए इन पाँचों को अश्वत्थामा ने मार डाला। ‘सर्व एव महारथाः’ ये सब के सब महारथी हैं। जो शास्त्र और शस्त्रविद्या दोनों में प्रवीण हैं और युद्ध में अकेले ही एक साथ दस हजार धनुर्धारी योद्धाओं का संचालन कर सकता है , उस वीर पुरुष को महारथी कहते हैं  । (टिप्पणी प0 7)  ऐसे बहुत से महारथी पाण्डव सेना में खड़े हैं। द्रोणाचार्य के मन में पाण्डवों के प्रति द्वेष पैदा करने और युद्ध के लिये जोश दिलाने के लिये दुर्योधन ने पाण्डव सेना की विशेषता बतायी। दुर्योधन के मन में विचार आया कि द्रोणाचार्य पाण्डवों के पक्षपाती हैं ही । अतः वे पाण्डव सेना की महत्ता सुनकर मेरे को यह कह सकते हैं कि जब पाण्डवों की सेना में इतनी विशेषता है तो उनके साथ तू सन्धि क्यों नहीं कर लेता ? ऐसा विचार आते ही दुर्योधन आगे के तीन श्लोकों में अपनी सेना की विशेषता बताता है – स्वामी रामसुखदास जी 

1.5     ‘धृष्टकेतु’ द्रोणाचार्य के हाथ से मारे गये। ‘चेकितानः’ सब यादव सेना तो हमारी ओर से लड़ने के लिये तैयार है और यह यादव चेकितान पाण्डवों की सेना में खड़ा है। चेकितान दुर्योधन के हाथ से मारे गये। ‘काशिराजश्च वीर्यवान्’ यह काशिराज बड़ा ही शूरवीर और महारथी है। यह भी पाण्डवों की सेना में खड़ा है। इसलिये आप सावधानी से युद्ध करना क्योंकि यह बड़ा पराक्रमी है। काशिराज महाभारत युद्ध में मारे गये। ‘पुरुजित्कुन्तिभोजश्च’ यद्यपि ‘पुरुजित् ‘ और ‘कुन्तिभोज’ ये दोनों कुन्ती के भाई होने से हमारे और पाण्डवों के मामा हैं तथापि इनके मन में पक्षपात होने के कारण ये हमारे विपक्ष में युद्ध करने के लिये खड़े हैं। ‘पुरुजित्’ और ‘कुन्तिभोज’ दोनों ही युद्ध में द्रोणाचार्य के हाथ से मारे गये। ‘शैब्यश्च नरपुङ्गवः’ यह शैब्य युधिष्ठिर का श्वशुर है। यह मनुष्यों में श्रेष्ठ और बहुत बलवान है। परिवार के नाते यह भी हमारा सम्बन्धी है परन्तु यह पाण्डवों के ही पक्ष में खड़ा है – स्वामी रामसुखदास जी 

1.6    ‘युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान् ‘ पाञ्चाल देश के बड़े बलवान और वीर योद्धा युधामन्यु तथा उत्तमौजा मेरे वैरी अर्जुन के रथ के पहियों की रक्षा में नियुक्त किये गये हैं। आप इनकी ओर भी नजर रखना। रात में सोते हुए इन दोनों को अश्वत्थामा ने मार डाला। ‘सौभद्रः’ यह कृष्ण की बहन सुभद्रा का पुत्र अभिमन्यु है। यह बहुत शूरवीर है। इसने गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदन की विद्या सीखी है। अतः चक्रव्यूह रचना के समय आप इसका खयाल रखें। युद्ध में दुःशासन-पुत्र के द्वारा अन्यायपूर्वक सिर पर गदा का प्रहार करने से अभिमन्यु मारे गये। ‘द्रौपदेयाश्च’ युधिष्ठिर ,भीम , अर्जुन , नकुल और सहदेव इन पाँचों के द्वारा द्रौपदी के गर्भ से क्रमशः प्रतिविन्ध्य , सुतसोम , श्रुतकर्मा , शतानीक और श्रुतसेन पैदा हुए हैं। इन पाँचों को आप देख लीजिये। द्रौपदी ने भरी सभा में मेरी हँसी उड़ाकर मेरे हृदय को जलाया है । उसी के इन पाँचों पुत्रों को युद्ध में मारकर आप उसका बदला चुकायें। रात में सोते हुए इन पाँचों को अश्वत्थामा ने मार डाला। ‘सर्व एव महारथाः’ ये सब के सब महारथी हैं। जो शास्त्र और शस्त्रविद्या दोनों में प्रवीण हैं और युद्ध में अकेले ही एक साथ दस हजार धनुर्धारी योद्धाओं का संचालन कर सकता है उस वीर पुरुष को महारथी कहते हैं ।(टिप्पणी प0 7)  ऐसे बहुत से महारथी पाण्डव सेना में खड़े हैं। द्रोणाचार्य के मन में पाण्डवों के प्रति द्वेष पैदा करने और युद्ध के लिये जोश दिलाने के लिये दुर्योधन ने पाण्डव सेना की विशेषता बतायी। दुर्योधन के मन में विचार आया कि द्रोणाचार्य पाण्डवों के पक्षपाती हैं ही । अतः वे पाण्डव सेना की महत्ता सुनकर मेरे को यह कह सकते हैं कि जब पाण्डवों की सेना में इतनी विशेषता है तो उनके साथ तू सन्धि क्यों नहीं कर लेता ? ऐसा विचार आते ही दुर्योधन आगे के तीन श्लोकों में अपनी सेना की विशेषता बताता है- स्वामी रामसुखदास जी 

 

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