अध्याय-एक : अर्जुन विषाद योग
28-47 अर्जुनका विषाद,भगवान के नामों की व्याख्या
दोषैरेतैः कुलजानां वर्णसङ्करकारकैः।
उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः॥1.43॥
दोषैः-दुष्कर्मों से; एतैः-इन सब; कुलघ्नानां-अपने परिवार को नष्ट करने वालों का; वर्ण-सङ्कर अवांछित संतानों के; कारकैः-कारणों से; उत्साद्यन्ते- नष्ट हो जाते हैं; जाति-धर्माः-सामुदायिक और परिवार कल्याण की योजनाएँ; कुल-धर्माः-पारिवारिक परम्पराएँ; च-भी; शाश्वता:-सनातन।
अपने दुष्कर्मों से कुल परम्परा का विनाश करने वाले दुराचारियों के कारण समाज में अवांछित सन्तानों की वृद्धि होती है और विविध प्रकार की सामुदायिक और परिवार कल्याण की गतिविधियों का भी विनाश हो जाता है।।1.43।।
दोषैरेतैः कुलघ्नानाम् ৷৷. कुलधर्माश्च शाश्वताः ‘ – युद्ध में कुल का क्षय होने से कुल के साथ चलते आये कुलधर्मों का भी नाश हो जाता है। कुलधर्मों के नाश से कुल में अधर्म की वृद्धि हो जाती है। अधर्म की वृद्धि से स्त्रियाँ दूषित हो जाती हैं। स्त्रियों के दूषित होने से वर्णसंकर पैदा हो जाते हैं। इस तरह इन वर्णसंकर पैदा करने वाले दोषों से कुल का नाश करने वालों के जाति-धर्म (वर्ण-धर्म) नष्ट हो जाते हैं। कुलधर्म और जातिधर्म क्या हैं ? एक ही जाति में एक कुल की जो अपनी अलग-अलग परम्पराएँ हैं , अलग-अलग मर्यादाएँ हैं , अलग-अलग आचरण हैं – वे सभी उस कुल के कुलधर्म कहलाते हैं। एक ही जाति के सम्पूर्ण कुलों के समुदायको लेकर जो धर्म कहे जाते हैं – वे सभी जातिधर्म अर्थात् वर्णधर्म कहलाते हैं जो कि सामान्य धर्म हैं और शास्त्रविधिसे नियत हैं। इन कुलधर्मों का और जातिधर्मों का आचरण न होने से ये धर्म नष्ट हो जाते हैं – स्वामी रामसुखदास जी