अध्याय-एक : अर्जुन विषाद योग
12-19 दोनों सेनाओं की शंख-ध्वनि का वर्णन
काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः।
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः॥1.17॥
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते।
सौभद्रश्च महाबाहुः शङ्खान्दध्मुः पृथक् पृथक्॥1.18॥
काश्य:-काशी (वाराणसी) के राजा ने; च-और; परम ईषु आस:-महान धनुर्धर; शिखण्डी-शिखण्डी ने; च-भी; महारथ:-दस हजार साधारण योद्धाओं से अकेला लड़ने वाला; धृष्टद्युम्नो:-धृष्टद्युम्न ने; विराट:-विराट; च-और; सात्यकिः-सात्यकि; च-तथा; अपराजित:-अजेय; द्रुपदः-द्रुपद; द्रौपदेया:-द्रौपदी के पुत्रों ने; च-भी; सर्वश:-सभी; पृथिवीपते -हे पृथ्वी का राजा; सौभद्रः-सुभद्रा के पुत्र; अभिमन्यु ने; च-भी; महाबाहुः-विशाल भुजाओं वाला; शड्.खान्–शंख; दध्मुः-बजाए; पृथक पृथक-अलग अलग।
हे पृथ्वीपति राजन्! राजा युधिष्ठिर ने अपना अनन्त विजय नाम का शंख बजाया तथा नकुल और सहदेव ने सुघोष एवं मणिपुष्पक नामक शंख बजाये। श्रेष्ठ धनुर्धर काशीराज, महा योद्धा शिखण्डी, धृष्टद्युम्न, विराट, अजेय सात्यकि, द्रुपद, द्रौपदी के पांच पुत्रों तथा सुभद्रा के महाबलशाली पुत्र वीर अभिमन्यु आदि सबने अपने-अपने अलग-अलग शंख बजाये।। 1.17-1.18 ।।
काश्यश्च परमेष्वासः ৷৷. शङ्खान् दध्मुः – पृथक – पृथक महारथी शिखण्डी बहुत शूरवीर था। यह पहले जन्म में स्त्री (काशिराज की कन्या अम्बा) था और इस जन्म में भी राजा द्रुपद को पुत्रीरूप से प्राप्त हुआ था। आगे चलकर यही शिखण्डी ‘स्थूणाकर्ण’ नामक यक्ष से पुरुषत्व प्राप्त करके पुरुष बना। भीष्मजी इन सब बातों को जानते थे और शिखण्डी को स्त्री ही समझते थे। इस कारण वे इस पर बाण नहीं चलाते थे। अर्जुन ने युद्ध के समय इसी को आगे करके भीष्मजी पर बाण चलाये और उनको रथ से नीचे गिरा दिया। अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु बहुत शूरवीर था। युद्ध के समय इसने द्रोणनिर्मित चक्रव्यूह में घुसकर अपने पराक्रम से बहुत से वीरों का संहार किया। अन्त में कौरवसेना के छः महारथियों ने इसको अन्यायपूर्वक घेर कर इस पर शस्त्र-अस्त्र चलाये। दुःशासन पुत्र के द्वारा सिर पर गदा का प्रहार होने से इसकी मृत्यु हो गयी। सञ्जय ने शंखवादन के वर्णन में कौरव सेना के शूरवीरों में से केवल भीष्मजी का ही नाम लिया और पाण्डव सेना के शूरवीरों में से भगवान श्रीकृष्ण , अर्जुन , भीम आदि अठारह वीरों के नाम लिये। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि सञ्जय के मन में अधर्म के पक्ष (कौरव सेना) का आदर नहीं है। इसलिये वे अधर्म के पक्ष का अधिक वर्णन करना उचित नहीं समझते परन्तु उनके मन में धर्म के पक्ष (पाण्डव सेना) का आदर होने से और भगवान श्रीकृष्ण तथा पाण्डवों के प्रति आदरभाव होने से वे उनके पक्ष का ही अधिक वर्णन करना उचित समझते हैं और उनके पक्ष का वर्णन करने में ही उनको आनन्द आ रहा है। पाण्डव सेना के शंख वादन का कौरव सेना पर क्या असर हुआ ? इसको आगे के श्लोक में कहते हैं – स्वामी रामसुखदास जी
1.18 काश्यश्च परमेष्वासः ৷৷. शङ्खान् दध्मुः – पृथक – पृथक महारथी शिखण्डी बहुत शूरवीर था। यह पहले जन्म में स्त्री (काशिराज की कन्या अम्बा) था और इस जन्म में भी राजा द्रुपद को पुत्री रूप से प्राप्त हुआ था। आगे चलकर यही शिखण्डी स्थूणाकर्ण नामक यक्ष से पुरुषत्व प्राप्त करके पुरुष बना। भीष्मजी इन सब बातों को जानते थे और शिखण्डी को स्त्री ही समझते थे। इस कारण वे इस पर बाण नहीं चलाते थे। अर्जुन ने युद्ध के समय इसी को आगे कर के भीष्मजी पर बाण चलाये और उनको रथ से नीचे गिरा दिया। अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु बहुत शूरवीर था। युद्ध के समय इसने द्रोणनिर्मित चक्रव्यूह में घुसकर अपने पराक्रम से बहुत से वीरों का संहार किया। अन्त में कौरवसेना के छः महारथियों ने इसको अन्यायपूर्वक घेर कर इस पर शस्त्र-अस्त्र चलाये। दुःशासन पुत्र के द्वारा सिर पर गदा का प्रहार होने से इसकी मृत्यु हो गयी। सञ्जय ने शंखवादन के वर्णन में कौरव सेना के शूरवीरों में से केवल भीष्मजी का ही नाम लिया और पाण्डव सेना के शूरवीरों में से भगवान श्रीकृष्ण , अर्जुन , भीम आदि अठारह वीरों के नाम लिये। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि सञ्जय के मन में अधर्म के पक्ष (कौरव सेना) का आदर नहीं है। इसलिये वे अधर्म के पक्ष का अधिक वर्णन करना उचित नहीं समझते परन्तु उनके मन में धर्म के पक्ष (पाण्डव सेना) का आदर होने से और भगवान श्रीकृष्ण तथा पाण्डवों के प्रति आदरभाव होने से वे उनके पक्ष का ही अधिक वर्णन करना उचित समझते हैं और उनके पक्ष का वर्णन करने में ही उनको आनन्द आ रहा है। पाण्डव सेना के शंख वादन का कौरव सेना पर क्या असर हुआ ? इसको आगे के श्लोक में कहते हैं – स्वामी रामसुखदास जी