भगवद गीता अध्याय 1 " अर्जुन विषाद योग "

 

 

Previous       Menu      Next

 

अध्याय-एक : अर्जुन विषाद योग 

28-47 अर्जुनका विषाद,भगवान के नामों की व्याख्या

 

 

Arjun Vishad Yog

येषामर्थे काक्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च

त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च।॥1.33॥

 

येषाम्-जिनके; अर्थ-लिए; काडक्षितम्-इच्छित है; न:-हमारे द्वारा; राज्यम्-राज्य; भोगा:-सुख; सुखानि;-सुख; च-भी; ते–वे; इमे-ये; अवस्थिता:-स्थित; युद्धे- युद्धभूमि में; प्राणान्–जीवन को; त्यक्त्वा-त्याग कर; धनानि–धन; च-भी;

 

हमें जिनके लिए राज्य, भोग और सुखादि अभीष्ट हैं, वे ही ये सब धन और जीवन की आशा को त्यागकर युद्ध में खड़े हैं॥1.33॥

 

 ‘येषामर्थे काङ्क्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च’ हम राज्य , सुख , भोग आदि जो कुछ चाहते हैं उनको अपने व्यक्तिगत सुख के लिये नहीं चाहते बल्कि इन कुटुम्बियों , प्रेमियों , मित्रों आदि के लिये ही चाहते हैं। आचार्यों , पिताओं , पितामहों , पुत्रों आदि को सुख-आराम पहुँचे , इनकी सेवा हो जाय , ये प्रसन्न रहें – इसके लिये ही हम युद्ध करके राज्य लेना चाहते हैं , भोग-सामग्री इकट्ठी करना चाहते हैं। ‘त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च ‘ – पर वे ही ये सब के सब अपने प्राणों की और धन की आशा को छोड़ कर युद्ध करने के लिये हमारे सामने इस रणभूमि में खड़े हैं। इन्होंने ऐसा विचार कर लिया है कि हमें न प्राणों का मोह है और न धन की तृष्णा है , हम मर बेशक जाएं पर युद्ध से नहीं हटेंगे। अगर ये सब मर ही जायँगे तो हमें राज्य किसके लिये चाहिये , सुख किसके लिये चाहिये , धन किसके लिये चाहिये अर्थात् इन सबकी इच्छा हम किसके लिये करें ? ‘प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च’ का तात्पर्य है कि वे प्राणों की और धन की आशा का त्याग करके खड़े हैं अर्थात् हम जीवित रहेंगे और हमें धन मिलेगा – इस इच्छा को छोड़कर वे खड़े हैं। अगर उनमें प्राणों की और धन की इच्छा होती तो वे मरने के लिये युद्ध में क्यों खड़े होते ? अतः यहाँ प्राण और धन का त्याग करने का तात्पर्य उनकी आशा का त्याग करने में ही है। जिनके लिये हम राज्य भोग और सुख चाहते हैं वे लोग कौन हैं ? इसका वर्णन अर्जुन आगे के दो श्लोकों में करते हैं – स्वामी रामसुखदास जी 

 

Next Page

 

 

By spiritual talks

Welcome to the spiritual platform to find your true self, to recognize your soul purpose, to discover your life path, to acquire your inner wisdom, to obtain your mental tranquility.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!