अध्याय-एक : अर्जुन विषाद योग
12-19 दोनों सेनाओं की शंख-ध्वनि का वर्णन
अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।
नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ॥1.16॥
अनन्तविजयम्-अनन्त विजय नाम का शंख; राजा-राजा; कुन्तिपुत्रः-कुन्ति के पुत्र; युधिष्ठिरः-युधिष्ठिर; नकुलः-नकुलः सहदेवः-सहदेव ने; च–तथा; सुघोषमणिपुष्पकौ-सुघोष तथा मणिपुष्पक नामक शंख;
कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय नामक और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाए॥1.16॥
अनन्तविजयं राजा ৷৷. सुघोषमणिपुष्पकौ – अर्जुन भीम और युधिष्ठिर ये तीनों कुन्ती के पुत्र हैं तथा नकुल और सहदेव ये दोनों माद्री के पुत्र हैं । यह विभाग दिखाने के लिये ही यहाँ युधिष्ठिर के लिये कुन्तीपुत्र विशेषण दिया गया है। युधिष्ठिर को राजा कहने का तात्पर्य है कि युधिष्ठिरजी वनवास के पहले अपने आधे राज्य (इन्द्रप्रस्थ) के राजा थे और नियम के अनुसार बारह वर्ष वनवास और एक वर्ष अज्ञातवास के बाद वे राजा होने चाहिये थे। ‘राजा’ का विशेषण देकर सञ्जय यह भी संकेत करना चाहते हैं कि आगे चलकर धर्मराज युधिष्ठिर ही सम्पूर्ण पृथ्वीमण्डल के राजा होंगे – स्वामी रामसुखदास जी