भगवद गीता अध्याय 1 " अर्जुन विषाद योग "

 

 

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अध्याय-एक : अर्जुन विषाद योग 

01-11 दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों और अन्य महान वीरों का वर्णन

 

 

भगवद गीता अध्याय 1 " अर्जुन विषाद योग "

 

भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जयः ।

अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च ॥1.8॥

 

भवान्-आप: भीष्मः-भीष्म पितामहः च-और; कर्ण:-कर्णः च-और; कपः-कृपाचार्य; च-और; समितिन्जयः-युद्ध में सदा विजयी; अश्वत्थामा- अश्वत्थामा; विकर्ण:-विकर्ण; च-और; सौमदत्ति:- सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा; तथा-और; एक- समान रूप से; च-भी।।

 

इस सेना में सदा विजयी रहने वाले आपके समान भीष्म, कर्ण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, विकर्ण तथा सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा आदि महा पराक्रमी योद्धा हैं जो युद्ध में सदा विजेता रहे हैं।। 1.8 ।।

 

‘भवान् भीष्मश्च’  आप और पितामह भीष्म दोनों ही बहुत विशेष पुरुष हैं। आप दोनों के समकक्ष संसार में तीसरा कोई भी नहीं है। अगर आप दोनों मेंसे कोई एक भी अपनी पूरी शक्ति लगाकर युद्ध करे तो देवता , यक्ष , राक्षस , मनुष्य आदि में ऐसा कोई भी नहीं है जो कि आपके सामने टिक सके। आप दोनों के पराक्रम की बात जगत में प्रसिद्ध ही है। पितामह भीष्म तो आबाल ब्रह्मचारी हैं और इच्छामृत्यु हैं अर्थात् उनकी इच्छा के बिना उन्हें कोई मार ही नहीं सकता। महाभारत युद्ध में द्रोणाचार्य धृष्टद्युम्न के द्वारा मारे गये और पितामह भीष्म ने अपनी इच्छा से ही सूर्य के उत्तरायण होने पर अपने प्राणों का त्याग कर दिया। ‘कर्णश्च’ कर्ण तो बहुत ही शूरवीर है। मुझे तो ऐसा विश्वास है कि वह अकेला ही पाण्डव सेना पर विजय प्राप्त कर सकता है। उसके सामने अर्जुन भी कुछ नहीं कर सकता। ऐसा वह कर्ण भी हमारे पक्ष में है। कर्ण महाभारत युद्ध में अर्जुन के द्वारा मारे गये। ‘कृपश्च समितिञ्जयः’ कृपाचार्य की तो बात ही क्या है , वे तो चिरंजीवी हैं ,  (टिप्पणी प0 8)  हमारे परम हितैषी हैं और सम्पूर्ण पाण्डव सेना पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। यद्यपि यहाँ द्रोणाचार्य और भीष्म के बाद ही दुर्योधन को कृपाचार्य का नाम लेना चाहिये था परन्तु दुर्योधन को कर्ण पर जितना विश्वास था उतना कृपाचार्य पर नहीं था। इसलिये कर्ण का नाम तो भीतर से बीच में ही निकल पड़ा। द्रोणाचार्य और भीष्म कहीं कृपाचार्य का अपमान न समझ लें , इसलिये दुर्योधन कृपाचार्य को संग्रामविजयी विशेषण देकर उनको प्रसन्न करना चाहता है। ‘अश्वत्थामा’ ये भी चिरंजीवी हैं और आपके ही पुत्र हैं। ये बड़े ही शूरवीर हैं। इन्होंने आपसे ही अस्त्र-शस्त्र की विद्या सीखी है। अस्त्र-शस्त्र की कला में ये बड़े चतुर हैं। ‘विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च’ आप यह न समझें कि केवल पाण्डव ही धर्मात्मा हैं । हमारे पक्ष में भी मेरा भाई विकर्ण बड़ा धर्मात्मा और शूरवीर है। ऐसे ही हमारे प्रपितामह शान्तनु के भाई बाह्लीक के पौत्र तथा सोमदत्त के पुत्र भूरिश्रवा भी बड़े धर्मात्मा हैं। इन्होंने बड़ी-बड़ी दक्षिणा वाले अनेक यज्ञ किये हैं। ये बड़े शूरवीर और महारथी हैं। युद्ध में विकर्ण भीम के द्वारा और भूरिश्रवा सात्यकि के द्वारा मारे गये। यहाँ इन शूरवीरों के नाम लेने में दुर्योधन का यह भाव मालूम देता है कि हे आचार्य ! हमारी सेना में आप भीष्म , कर्ण , कृपाचार्य आदि जैसे महान , पराक्रमी , शूरवीर हैं – ऐसे पाण्डवों की सेना में देखने में नहीं आते। हमारी सेना में कृपाचार्य और अश्वत्थामा ये दो चिरंजीवी हैं जबकि पाण्डवों की सेना में ऐसा एक भी नहीं है। हमारी सेना में धर्मात्माओं की भी कमी नहीं है। इसलिये हमारे लिये डरने की कोई बात नहीं है – स्वामी रामसुखदास जी 

 

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