भगवद गीता अध्याय 1 " अर्जुन विषाद योग "

 

 

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अध्याय-एक : अर्जुन विषाद योग 

01-11 दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों और अन्य महान वीरों का वर्णन

 

 

भगवद गीता अध्याय 1 " अर्जुन विषाद योग ".अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः।

नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः ॥1.9॥

 

अन्ये-अन्य सब; च-भी; बहवः-अनेक; शूराः-महायोद्धा; मत् अर्थे- मेरे लिए; त्यक्त-जीविता:-अपने जीवन का बलिदान देने को तत्पर; नाना-शस्त्र-प्रहरणा:-विविध प्रकार के शस्त्रों से सुसज्जित; सर्वे-सभी; युद्ध विशारदा:-युद्ध कौशल में निपुण।।

 

यहाँ हमारे पक्ष में अन्य अनेक महायोद्धा भी हैं जो मेरे लिए अपने जीवन का बलिदान करने के लिए तत्पर हैं। वे युद्ध कौशल में पूर्णतया निपुण और विविध प्रकार के शस्त्रों से सुसज्जित हैं।। 1.9 ।।

 

 ‘अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः’ – मैंने अभी तक अपनी सेना के जितने शूरवीरों के नाम लिये हैं , उनके अतिरिक्त भी हमारी सेना में बाह्लीक , शल्य , भगदत्त , जयद्रथ आदि बहुत से शूरवीर , महारथी हैं जो मेरी भलाई के लिये मेरी ओर से लड़ने के लिये अपने जीने की इच्छा का त्याग करके यहाँ आये हैं। वे मेरी विजय के लिये मर भले ही जायँ पर युद्ध से हटेंगे नहीं। उनकी मैं आपके सामने क्या कृतज्ञता प्रकट करूँ ? नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः – ये सभी लोग हाथ में रखकर प्रहार करने वाले , तलवार , गदा , त्रिशूल आदि नाना प्रकार के शस्त्रों की कला में निपुण हैं और हाथ से फेंक कर प्रहार करने वाले बाण , तोमर , शक्ति आदि अस्त्रों की कला में भी निपुण हैं। युद्ध कैसे करना चाहिये , किस तरह से , किस पैंतरे से और किस युक्ति से युद्ध करना चाहिये , सेना को किस तरह खड़ी करनी चाहिये आदि युद्ध की कलाओं में भी ये बड़े निपुण हैं कुशल हैं। दुर्योधन की बातें सुनकर जब द्रोणाचार्य कुछ भी नहीं बोले तब अपनी चालाकी न चल सकने से दुर्योधन के मन में क्या विचार आता है इसको सञ्जय आगे के श्लोक में कहते हैं  (टिप्पणी प0 9) – स्वामी रामसुखदास जी 

 

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