अध्याय-एक : अर्जुन विषाद योग
12-19 दोनों सेनाओं की शंख-ध्वनि का वर्णन
पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्ख भीमकर्मा वृकोदरः॥1.15॥
पाञ्चजन्यं–पाञ्चजन्य नामक शंख; ऋषीकेश:-श्रीकृष्ण, जो मन और इन्द्रियों के स्वामी हैं; देवदत्तम-देवदत्त नामक शंख; धनम् जयः-धन और वैभव का स्वामी, अर्जुन ; पौण्ड्रम्-पौण्ड्र नामक शंख; दध्मौ–बजाया; महाशङ्ख-भीषण शंख; भीमकर्मा-दुस्साधय कर्म करने वाला; वृक उदरः-अतिभोजी भीम ने।
ऋषीकेश भगवान् कृष्ण ने अपना पाञ्जन्य शंख बजाया, अर्जुन ने देवदत्त शंख तथा अतिभोजी एवं अति दुष्कर कार्य करने वाले भीम ने पौण्डू नामक भीषण शंख बजाया।। 1.15 ।।
‘पाञ्चजन्यं हृषीकेशः’ सबके अन्तर्यामी अर्थात् सबके भीतर की बात जानने वाले साक्षात भगवान श्रीकृष्ण ने पाण्डवों के पक्ष में खड़े होकर पाञ्चजन्य नामक शंख बजाया। भगवान ने ‘पञ्चजन’ नामक शंखरूपधारी दैत्य को मारकर उसको शंखरूप से ग्रहण किया था । इसलिये इस शंख का नाम पाञ्चजन्य हो गया। ‘देवदत्तं धनञ्जयः’ – राजसूय यज्ञ के समय अर्जुन ने बहुत से राजाओं को जीत कर बहुत धन इकट्ठा किया था। इस कारण अर्जुन का नाम धनञ्जय पड़ गया (टिप्पणी प0 14) । निवात कवचादि दैत्योंके साथ युद्ध करते समय इन्द्र ने अर्जुन को देवदत्त नामक शंख दिया था। इस शंख की ध्वनि बड़े जोर से होती थी जिससे शत्रुओं की सेना घबरा जाती थी। इस शंख को अर्जुन ने बजाया। पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः – हिडिम्बासुर , बकासुर , जटासुर आदि असुरों तथा कीचक , जरासन्ध आदि बलवान वीरों को मारने के कारण भीससेन का नाम ‘भीमकर्मा’ पड़ गया। उनके पेट में जठराग्नि के सिवाय ‘वृक’ नाम की एक विशेष अग्नि थी जिससे बहुत अधिक भोजन पचता था। इस कारण उनका नाम ‘वृकोदर’ पड़ गया। ऐसे भीमकर्मा वृकोदर भीमसेन ने बहुत ब़ड़े आकार वाला ‘पौण्ड्र’ नामक शंख बजाया – स्वामी रामसुखदास जी