भगवद गीता अध्याय 1 " अर्जुन विषाद योग "

 

 

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अध्याय-एक : अर्जुन विषाद योग 

28-47 अर्जुनका विषाद,भगवान के नामों की व्याख्या

 

 

Arjun Vishad Yog

उत्सन्नकुलधार्माणां मनुष्याणां जनार्दन।

नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम ॥1.44॥

 

उत्सन्न–विनष्ट; कुलधर्माणाम्-कुल या पारिवारिक परम्पराएं; मनुष्याणाम्-ऐसे मनुष्यों का; जनाद्रन–सभी जीवों के पालक, श्रीकृष्ण; नरके-नरक में; अनियतम्-अनिश्चितकाल; वासः-निवास; भवति–होता है; इति–इस प्रकार; अनुशुश्रुम – विद्वानों से मैंने सुना है।

 

हे जनार्दन! मैंने गुरुजनों से सुना है कि जो लोग कुल परंपराओं का विनाश करते हैं, वे अनिश्चितकाल के लिए नरक में डाल दिए जाते हैं।।1.44।।

 

उत्सन्नकुलधर्माणाम् ৷৷. अनुशुश्रुम (टिप्पणी प0 30) – भगवान ने मनुष्य को विवेक दिया है , नया कर्म करने का अधिकार दिया है। अतः यह कर्म करने में अथवा न करने में , अच्छा करने में अथवा मन्दा करने में स्वतन्त्र है। इसलिये इसको सदा विवेक-विचारपूर्वक कर्तव्यकर्म करने चाहिये परन्तु मनुष्य सुख-भोग आदि के लोभ में आकर अपने विवेक का निरादर कर देते हैं और राग-द्वेष के वशीभूत हो जाते हैं जिससे उनके आचरण शास्त्र और कुल-मर्यादा के विरुद्ध होने लगते हैं। परिणामस्वरूप इस लोक में उनकी निन्दा ,अपमान , तिरस्कार होता है और परलोक में दुर्गति नरकों की प्राप्ति होती है। अपने पापों के कारण उनको बहुत समय  तक नरकोंका कष्ट भोगना पड़ता है। ऐसा हम परम्परा से बड़े-बूढ़े गुरुजनों से सुनते आये हैं। ‘मनुष्याणाम्’ पद में कुलघाती और उनके कुल के सभी मनुष्यों का समावेश किया गया है अर्थात् कुलघातियों के पहले जो हो चुके हैं उन (पितरों) का अपना और आगे होने वाले (वंश) का समावेश किया गया है। युद्ध के होने वाली अनर्थ परम्परा के वर्णन का खुद अर्जुन पर क्या असर पड़ा ? इसको आगे के श्लोक में बताते हैं – स्वामी रामसुखदास जी 

 

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