श्रद्धात्रयविभागयोग- सत्रहवाँ अध्याय
Chapter 17: Śhraddhā Traya Vibhāg Yog
आहार, यज्ञ, तप और दान के पृथक-पृथक भेद
आयुःसत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः।
रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः।।17.8।।
आयुसत्त्वः-आयु में वृद्धि; बल-शक्ति; आरोग्य – स्वास्थ्य; सुख-सुख; प्रीति-संतोष; विवर्धनाः-वृद्धि; रस्याः-रस से युक्त; स्निग्धाः-सरस; स्थिरा:-पौष्टिक; हृद्याः-हृदय को अच्छे लगने वाले ; आहारा:-भोजन; सात्त्विकप्रिया – सत्वगुणी को प्रिय लगने वाले।
सत्वगुण की प्रकृति वाले लोग ऐसा भोजन पसंद करते हैं जिससे आयु, सद्गुणों, शक्ति, स्वास्थ्य, प्रसन्नता तथा संतोष में वृद्धि होती है। ऐसे खाद्य पदार्थ रसीले, सरस, पौष्टिक तथा प्राकृतिक रूप से स्वादिष्ट होते हैं अर्थात आयु, सत्त्वगुण, शुद्धि , बल, आरोग्य, सुख , संतोष , और प्रसन्नता बढ़ाने वाले या मन को प्रसन्न करने वाले , स्थिर रहने वाले (जिस भोजन का सार शरीर में बहुत काल तक रहता है ) , हृदय को शक्ति देने वाले, रसयुक्त , चिकने ( घी आदि की चिकनाई से युक्त ) तथा तथा स्वभाव से ही मन को प्रिय – ऐसे आहार सात्त्विक मनुष्य को प्रिय होते हैं৷৷17.8॥
आयुः – जिन आहारों के करने से मनुष्य की आयु बढ़ती है । सत्त्वम् – सत्त्वगुण बढ़ता है । बलम् – शरीर , मन , बुद्धि आदि में सात्त्विक बल एवं उत्साह पैदा होती है । आरोग्यः – शरीर में नीरोगता बढ़ती है । सुखम् – सुखशान्ति प्राप्त होती है और प्रीतिविवर्धनाः – जिनको देखने से ही प्रीति पैदा होती है (टिप्पणी प0 841.3) वे अच्छे लगते हैं। इस प्रकार के स्थिराः – जो गरिष्ठ नहीं प्रत्युत सुपाच्य हैं और जिनका सार बहुत दिन तक शरीर में शक्ति देता रहता है और हृद्याः – हृदय , फेफड़े आदि को शक्ति देने वाले तथा बुद्धि आदि में सौम्य भाव लाने वाले । रस्याः – फल , दूध , खाँड़ आदि रसयुक्त पदार्थ । स्निग्धाः – घी , मक्खन , बादाम , काजू , किशमिश , सात्त्विक पदार्थों से निकले हुए तेल आदि स्नेहयुक्त भोजन के पदार्थ जो अच्छे पके हुए तथा ताजे हैं। आहाराः सात्त्विकप्रियाः – ऐसे भोजन के (भोज्य , पेय , लेह्य और चोष्य) पदार्थ सात्त्विक मनुष्य को प्यारे लगते हैं। अतः ऐसे आहार में रुचि होने से उसकी पहचान हो जाती है कि यह मनुष्य सात्त्विक है।