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GunTrayVibhagYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 14 | गुणत्रयविभागयोग ~ अध्याय चौदह
अथ चतुर्दशोऽध्यायः- गुणत्रयविभागयोग
05 – 18 सत्, रज, तम- तीनों गुणों का विषय
कर्मणः सुकृतस्याहुः सात्त्विकं निर्मलं फलम्।
रजसस्तु फलं दुःखमज्ञानं तमसः फलम्।।14.16।।
कर्मण:-कर्म का; सुकृतस्य-शुद्ध; आहुः-कहा गया है; सात्त्विकम् – सत्वगुण; निर्मलम्-विशुद्ध; फलम्-फल; रजसः-रजोगुण का; तु-लेकिन; फलम् – परिणाम; दुःखम्-दुख; अज्ञानम्-अज्ञानता; तमसः-तमोगुण का; फलम्-फल
ऐसा कहा जाता है कि सत्वगुण में सम्पन्न किए गये कार्य शुभ फल प्रदान करते हैं, रजोगुण के प्रभाव में किए गये कर्मों का परिणाम पीड़ादायक होता है तथा तमोगुण से सम्पन्न किए गए कार्यों का परिणाम अंधकार है अर्थात सतोगुण में किये गये कर्म का फल सुख और ज्ञान युक्त तथा निर्मल कहा गया है, रजोगुण में किये गये कर्म का फल दुःख कहा गया है और तमोगुण में किये गये कर्म का फल अज्ञान या मूढ़ता कहा गया है। 14.16