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GunTrayVibhagYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 14 | गुणत्रयविभागयोग ~ अध्याय चौदह
अथ चतुर्दशोऽध्यायः- गुणत्रयविभागयोग
19-27 भगवत्प्राप्ति का उपाय और गुणातीत पुरुष के लक्षण
मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयोः।
सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीतः स उच्यते।।14.25।।
मान-सम्मान; अपमानयो:-तथा अपमान में; तुल्य:-समान; मित्र-मित्र; अरि-शत्रु; पक्षयोः-पक्षों को; सर्व-सबों का; आरम्भ-परिश्रम; परित्यागी-त्याग करने वाला; गुण-अतीत-प्रकृति के गुणों से ऊपर उठने वाला; सः-वह; उच्यते-कहा जाता है ।
जो धीर मनुष्य अपने मान अपमान में सम अर्थात चाहे उसका सम्मान हो या अपमान वह दोनों ही परिस्थितियों में समान रूप से व्यवहार करता है – अपने मान और अपमान को एक समान समझता है , जो मित्र और शत्रु के पक्ष में समान भाव में रहता है अर्थात जो अपने मित्रों और शत्रुओं के साथ एक समान व्यवहार करता है तथा जो सम्पूर्ण कर्मों के आरम्भ का त्यागी है या जिसमें सभी कर्मों के करते हुए भी कर्तापन का भाव नहीं होता है ऐसे मनुष्य को प्रकृति के गुणों से अतीत अर्थात गुणातीत या गुणों से ऊपर उठने वाला कहा जाता है या गुणों को पार करने वाला कहा गया है । 14.25